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नौ तत्त्व
देखिए सामने चित्र (१) में जीव को एक सरोवर जैसा बताया है | सरोवर में ऐसे तो साफ पानी है, परन्तु इसमें नाली द्वारा कूडा-कर्कट इकट्ठा हो गया है, कूडा एकमेक हो गया है । इसमें दो रंग के विभाग हैं | थोडा कूडा दिखने में अच्छा है, थोडा खराब। (चित्र-२) अब यदि नाली बंद हो तो नया कूडा नहीं आए और ऊपर से इसमें चूर्ण डाला जाए तो कूडा साफ हो जाता है। अन्त में सभी कूडा कचरा साफ हो जाने पर सरोवर निर्मल पानी से भरा हुआ रहता है । (चित्र-३) (१) अपने जीव में अभी यह स्थिति है । मूलभूत रीत से इसमें निर्मल ज्ञान, दर्शन, सुख रुपी पानी है। (२) परन्तु इसमें कर्म कूडा इकट्ठा हुआ है । ये कर्म अजीव है । (३) कर्म के भी दो विभाग है । अच्छे फल (सुख) देनेवाले कर्म वह पुण्य । (४) खराब फल (दुःख) देनेवाले कर्म वह पाप। (५) कर्म जो नाली से बहकर आते हैं वह आस्रव ।
इन्द्रियों की आधीनता-(आँख, नाक, कान, जीभ के मनपसन्द ही करना - टी.वी., होटल, मदमस्त गीत सुनना आदि), हिंसा आदि अव्रत (बाधापूर्वक पाप का त्याग नहीं करना वह), कषाय इत्यादि आस्रव है। (६) आस्रव - नाली को बन्द करना या आड करना वह संवर | अच्छी भावना, सामायिक, अहिंसा,क्षमा आदि संवर है। (७) पुराने कर्मों को नाश करनेवाला चूर्ण वह निर्जरा-तपस्या,स्वाध्याय, प्रायश्चित्त वगैरह निर्जरा है। (८) संसारी जीव के साथ कर्म एकमेक चिपके वह बन्ध । (९) सर्व कर्मों का नाश होते ही जीव प्रकट हुए केवलज्ञान, केवलदर्शन, अनन्त सुखादिवाला बनता है वह मोक्ष | अर्थात् जीव अपने मूलभूत स्वरुप को प्राप्त करे वह मोक्ष ।
(१) जीव (२) अजीव (३) पुण्य (४) पाप (५) आस्रव (६) संवर (७) निर्जरा (८)बंध और(९) मोक्ष, ये नौ तत्व कहलाते हैं। तीर्थंकर भगवानने जिस तरह बताया है उसी तरह मानते है । उस पर अचूक, द्रढ श्रद्धा रखते हैं उनमें समकीत-सम्यक्त्व-सम्यग्दर्शन प्राप्त हुआ कहलाता है ।
सम्यक्त्व आए तो मोक्ष निश्चित हो जाता है।
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