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जीव, कर्म, ईश्वर
जीव को किसने बनाया ? दुनिया किसने बनाई?
जीव नया नहीं बना है । वह आकाश की तरह अनादिकाल से (जिसकी कोई शुरुआत नहीं वह अनादि) है | जीव के कर्म इसके नये-नये शरीर बनाते है, परन्तु कोई ईश्वर जीव बनाता नहीं। नया तो देह बनता है,जीव तो वो ही पुराना होता है।
दुनिया यानी क्या ? जमीन, पर्वत, नदी, पेड इत्यादि ही न ! ये क्या है ? एकेन्द्रिय जीव के शरीर. और ये भी उन जीवों के कर्म से बने हैं, किसी ईश्वरने बनाए नहीं है, तो फिर शरीर बनानेवाले कर्म मतलब क्या ? कर्म यह भी सूक्ष्म पुद्गल (द्रव्य) है । (देखिए चित्र नं.१,२,३) पवन घर में धूल लाता है, हवा चक्की को फिराती है, लोह-चुंबक लोहे को खींचता है । वहाँ धूल लानेवाला, चक्की को फिरानेवाला या लोहे को खींचनेवाला कोई ईश्वर है ? नहीं न ! इस प्रकार जीव के कर्म जीव पर शरीर के पुद्गल चिपकाते है । बाकी शरीर बनानेवाला कोई ब्रह्मा नहीं है । (चित्र-४)
कर्म जीव को भिन्न-भिन्न गति में फिराता है । जीव के पास सुख-दुरव के साधन रवींच लाता है। जीव को सुरवी-दुम्रवी बनाता है। यह सभी करनेवाला कोई ईश्वर नहीं है। किन्तु कर्म है। (चित्र-५)
कर्म से ही नये-नये शरीर, कर्म से सेठाई, कर्म से पैसा, कर्म से बंगला, कर्म से रुग्णता, कर्म से बन्धन, कर्म से मौत वगैरह होते है।
ये कर्म कहाँ से आये? जीव प्रभु-भक्ति में तरबोर हो, वैराग्य,ज्ञान, दान, दया, तप वगैरह में रत हो, तब उसको शुभकर्म (पुण्य) चिपकते है।
जीव हिंसा, असत्य (झूठ), चोरी, रंगराग, बहुत सम्पत्ति एकत्रित करने की इच्छा या इकट्ठा किया हुआ सँभाल के रखने की मूर्छा रुपपरिग्रह वगैरह में आसक्त होता है तब उसको अशुभ कर्म (पाप) चिपकते हैं।
दीए के ऊपर का ढक्कन उसके प्रकाश को ढंकता है वैसे जीव पर रहे हुए कर्म जीव के ज्ञान, सुख, शक्ति आदि को ढंक देते हैं | परन्तु गुरुदेव के उपदेश के अनुसार धर्म करें, चारि लेकर बहुत ही अच्छा संयम, स्वाध्याय, तप आदि करेंतो उनके प्रभाव से सभी कमों का नाश होता है और जीव स्वयं शिव, सिद्ध, बुद्ध,मुक्त परमात्मा बनता है, अर्थात् मोक्ष प्राप्त करता है। (चित्र-६)
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