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________________ सात व्यसन और अभक्ष्य त्याग (१) द्यूत (२) मांसाहार (३) शराब (४) वेश्यागमन (५) शिकार (६) चोरी और (७) परस्त्रीगमन -ये ७ व्यसन (अशुभ कार्य) महापापकर्म बंधानेवाले, नरक में ले जानेवाले हैं । जैनों को तो ये सर्व बाधा और नियम से सर्वथा बन्ध होने चाहिए। नियम के बिना (पापनहीं करने परभी) पापकर्मबँधतेजाते हैं। जैन से अभक्ष्य भी नहीं खाया जा सकता क्योंकि इसमें सूक्ष्म और त्रस (हिलते-चलते) जीव बहुत होते हैं । ये खाने से बहुत पाप लगता है, बुद्धि बिगडती (मलिन होती) है, शुभ-कर्तव्य नहीं हो सकते । परिणाम स्वरुप इस भव में और परलोक में भी बहुत दुःखी-दुःखी होना पडता है | मांस,शराब,शहद औरमक्खन (छाछ में से बाहर निकालने के बाद का मक्खन) ये चारों अभक्ष्य गिने जाते हैं | कन्द-मूल, काई (सिवार) फफुदी इत्यादि भी अभक्ष्य हैं, क्योंकि इसमें अनन्त जीव होते हैं। इसके अवाला बासी भोजन, अचार(पानी के अन्शवाला आचार), द्विदल के साथ कच्चा दही-छाछ वगैरह, दो रात के बाद का दही-छाछ तथा बस्फ, आइस्क्रीम, कुलफी, कोल्ड्रींक्स वगैरह भी अभक्ष्य गिने जाते हैं । रात्रि भोजन भी नही कर सकते। (देखिए-चित्र-१) उसमें मांस खानेवाला बैल बना है और कसाई द्वारा काटा जा रहा है। (चित्र-२) मनुष्य शराब पीकर गटरमें पडा है, उसके खुले हुए मुँह में कुत्ता पेशाब करता है । (चित्र-३) शहद के (छत्ते) पर असंख्य जन्तु चिपक कर मरते हैं । मक्खियाँ विष्टा वगैरह के अपवित्र पुद्गल लाकर इसमें भरती है । शहद निकालनेवाला धूनी धधका कर शहद के छत्ते को बोरे (बडे थैले) में रखता है, इसमें बहुत सारी मक्खियाँ | मरती है। (चित्र-४) में-मक्खन में उसी वर्ण के (रंग के) असंख्य जीव सूक्ष्मदर्शक यंत्र (Microscope) द्वारा दर्शाये हैं। (चित्र-५) में रात को खानेवाले कौआ, उल्लु, बिल्ली, चमगादड वगैरह होते हैं । होटल में अभक्ष्य होता है, अभक्ष्य की मिलावट हो सकती है-इसलिए होटलका,लारी का,धाबे का भी नहीं खा सकते। फास्टफुड वगैरह भी नहीं खाना चाहिए। (चित्र-६) में-गर्म नहीं किया हुआ दही, छाछ या दुध, द्विदल के साथ मिलने से तत्काल असंख्य सूक्ष्म जीव उत्पन्न होते हैं। इसी प्रकार बासी नरमपूरी, रोटी,खोया वगैरह में तथा बराबर धूप में तपाये बिना के आचार में और दो रात से ज्यादा के दहींछाछ में भी असंख्य जीव उत्पन्न होते है । इसलिए ये सभी अभक्ष्य-भक्षण नहीं करने योग्य बनते है । तथा कन्दमूल, प्याज, आलू, अदरक, लहसुन, मूली, गाजर, शकरकन्द वगैरह में भी कण-कण में अनन्त जीव हैं । बेंगन आदि भी अभक्ष्य है । नमी से खाखरा, पापड, वगैरह में फफूंदी आती है वह भी अनन्तकाय है | अतः अभक्ष्य है। १९ www.jainelibrary.orgs
SR No.003234
Book TitleTattvagyana Balpothi Sachitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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