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________________ श्रावकों की दिनचर्या सवेरे जल्दी जागना । जागते ही 'नमो अरिहंताणं' बोलना । बिस्तर छोडकर नीचे बैठकर शांत चित्त से ७-८ नवकार गिनना | फिर विचार करना कि ' मैं कौन हूँ ? मैं जैन मनुष्य-दूसरे जीवों से बहुत ज्यादा विकसित,इसलिए मुझे शुभकार्यरुपधर्म ही करना चाहिए। उसके लिए अभी अच्छा अवसर है।' ऊठ करके माता-पिता के चरण-स्पर्श करना । फिर प्रतिक्रमण, वह नहीं हो सके तो सामायिक करनी । यदि वह भी नहीं हो सके तो 'सकल तीर्थ' सूत्र बोलकर सर्व तीर्थों को वंदन करें और 'भरहेसर' सज्झाय बोलकर महान आत्माओं को याद करें । रात्रि के पापों के लिए मिच्छामि दुक्कडं कहना । बादमें कम-से-कम नवकारशी का पच्चखाण धारें। पर्व तिथि हो तब बियासणा, एकासणा, आयंबिल आदि शक्ति अनुसार धारें। मन्दिर में भगवान के दर्शन करने जाना । वहाँ प्रभु के गुणों को और उपकारों को याद करें | उपाश्रय जाकर गुरुमहाराज को नमन करें । सुखशाता पूछनी । भात-पानी का लाभ देने की बिनती करनी, निश्चय किया हुआ पच्चक्खाण करना। सूर्योदय से ४८ मिनिट बाद नवकारशी का पच्चखाण पार सकते हैं | १/४ दिन गुजरने पर पोरिसी, १/४ + १/८ दिन जाए तब साढपोरिसी, १/२ दिन जाए तब पुरिमुड्ड पच्चक्खाण पार सकते हैं। नवकारशी से नरकगति लायक १०० वर्ष के पाप टूटते हैं । पोरिसी से १००० वर्ष के, साढपोरिसी से दस हजार वर्ष के, पुरिमुढ अथवा बियासणा से लाख वर्ष के पाप टूटते है। स्नान करके स्वच्छ अलग कपडे पहनकर हमेशा भगवान की पूजा करें । पूजा (भक्ति) किये बिना भोजन नहीं किया जाता | पूजा के लिए हो सके तो पूजन की सामग्री (दूध, चन्दन, केसर, धूप, फूल, दीपक, बरक, आंगी की अन्य सामग्री, चावल, फल, नैवेद्य आदि) घर से ले जानी चाहिए। गुरु भगवंत गाँव में विराजमान हो तो गुरु महाराज के पास व्याख्यान-उपदेश सुनें । प्रभु की वाणी सुनने से सच्ची समझ मिलती है,शुभ-भावना बढती है,जीवन सुधरता जाता है। __शाम को सूर्यास्त के पूर्व हि भोजन कर लेना चाहिये । श्रावकों को महापापकारी रात्रिभोजन करना उचित नहीं है। भोजन के पश्चात् मन्दिर में दर्शन करें। धूप-पूजा, आरती उतारें। शाम को प्रतिक्रमण करना । फिर धार्मिक पुस्तकें पढना । पाठशाला में हररोज जाना | कभी भी झूठ नहीं बोलना, चोरी नहीं करनी, निंदा नहीं करनी, बीडी-सिगारेट नहीं पीना, जूआ नहीं खेलना, झगड़ा नहीं करना, जीवदया रवना, परोपकार करते रहना । पापप्रवृतियों का त्याग औरधर्मसाधना की वृद्धि से जीवन सफल होता है। Jun Education intamaporial १५ Fale Only Contrary.org
SR No.003234
Book TitleTattvagyana Balpothi Sachitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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