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________________ धर्म धर्म करते हैं तो बहुत सुख मिलता हैं । पाप करते हैं तो बहुत दुःख भोगने पड़ते हैं । पाप करने से कुत्ते, बिल्ली, कीडे, मकोडे, होना पडता है, नरक में राक्षस के हाथ से बहुत पीडित होना पडता है । जब कि धर्म करने से आत्मा का विकास होता है, विमान में देव हो सकते हैं और मोक्ष मिलता है । फिर कोई दुःख ही नहीं, सुख और केवल सुख। सर्वज्ञ वीतराग भगवान ने कहा है, वही सच्चा धर्म । उन्होंने चारप्रकारके धर्म बताये हैं - दान-शील-तप औरभाव। दान धर्म में : (१) भगवान की पूजा-भक्ति करनी - दूध (जल), चंदन, केसर, फूल, धूप, घी का दिया, चावल (अक्षत), फल और नैवेद्य (मिठाई, बतासे, साकर ईत्यादि) अर्पण करना। (२) साधु-मुनिराज को बहेराना : भोजन, वस्त्र, दवाई आदि देना। (३) भिखारी-लूले-लंगडे-अंधे आदि को खाना-पीना, ठंडी में ओढने के लिए कपडे इत्यादि देना। (४) कीड़े-मकोडे इत्यादि कोई भी जीव को मारना नहीं - अभयदान देना । इसके लिए नीचे देखकर चलना। (५) धर्म-कार्यों में (मंदिर-उपाश्रय बनानेमें), साधर्मिक भक्ति, शिबिर-पाठशाला आदि में धन देना। (६) दूसरों को धार्मिक ज्ञान देना, उसमें सहायता करना। शील धर्म में : ब्रह्मचर्य, सदाचार, व्रत-नियम (बाधा) सामायिक, सुदेव-सुगुरू-सुधर्म पर अटल श्रद्धा, माता-पिता, विद्यागुरू, देव गुरू, बडे आदि का विनय करना वगैरह । तप धर्म में : नवकारशी (सूर्योदय से ४८ मिनिट बाद मुट्ठी बन्ध करके नवकार गिनकर भोजन या नाश्ता करना), पोरसि, बियासणा, एकासणा, आयंबिल, उपवास आदि शक्ति के अनुसार करना । उनोदरी-भूख हो उससे कम खाना, मन को मलिन करे वैसी विगई-दूध, घी, मिठाई वगैरह में से एकाध त्यागना | धर्म-क्रिया में समता से कष्ट सहन करना, धार्मिक अध्ययन (स्वाध्याय) करना । पापों का गुरू समक्ष स्वीकार, संघ की सेवा, ध्यान इन सभी का तप में समावेश होता है । उसमें से हो सके उतना करना। भाव धर्म में : अच्छी भावना रखना, जैसे कि, 'ओह ! यह संसार असार है, काया - माया सभी नाशवान हैं, धर्म ही सार है । अरिहंत आदि परमेष्ठी सच्चे तारक हैं, सर्व जीव मेरे मित्र हैं, सभी पाप से बचें, सभी सुखी हों, सभी जीव मोक्ष प्राप्त करें।' 'में आत्मा हूँ, काया आदि सभी मुझसे भिन्न हैं।' ___अहिंसा, संयम औरतप-ये मुख्य धर्म हैं। धर्म का पाया-मूल सम्यक्त्व है । सम्यक्त्व अर्थात् अरिहंत यही मुझे मान्य देव, इनके वचन पर दृढ श्रद्धा तथा सच्चे साधु ही गुरू तरीके मान्य और उन पर श्रद्धा-प्रेम रखना। १३ For Oy inelibrary.org
SR No.003234
Book TitleTattvagyana Balpothi Sachitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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