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(अनुसंधान पृष्ठ ७५ से चालु) चउत्थे अणुव्वयम्मि, चौथे स्वदारसंतोष परस्त्रीगमन विरमण अणुव्रत के विषय में पांच निच्चं परदारगमणविरईओ । । अतिचार-प्रमाद से या रागादि अप्रशस्त भावों से १) व्रत को मलिन करे आयरियमप्पसत्थे,
वैसी कुंवारी कन्या-विधवादि के साथ, २) रखात अथवा वेश्या के साथ इत्य पमायप्पसंगेणं ||१५|| विषयभोग करना ३) कामवासना जागृत करनेवाली क्रिया करना अपरिग्गहिआ-इत्तर
४) परविवाहकरण और ५) कामसुख की तीव्र अभिलाषा, चौथे व्रत के अणंगविवाह-तिव्वअणुरागे । अतिचार में दिवससंबंधी बंधे हुए सर्व अशुभकर्म से मैं पीछे हटता चउत्थवयस्स-इआरे, हूँ।। १५-१६) पडिक्कमे देसि सव्वं ।।१६।। इत्तो अणुव्वए पंचमम्मि,
अब पांचवे परिग्रह परिमाण अणुव्रत विषय के पांच अतिचार-प्रमाद से आयरियमप्पसत्यम्मि ।
अथवा अप्रशस्त भावों से १) धन-धान्य २) क्षेत्र-वास्तु (खेत और परिमाण-परिच्छेए,
मकान) ३) सोना-चांदी ४) अन्य धातुओं तथा शृंङ्गार-सज्जा और इत्थ पमायप्पसंगेणं ||१७||
५) मनुष्य, पक्षी तथा पशुओं का प्रमाण उल्लंघन करना, इन अतिचारों धण-धन्न-खित्त-वत्यू,
से दिवस संबंधी लगे हुए अशुभ कर्मों का प्रतिक्रमण करता हूँ || १७-१८) रूप्प-सुवन्ने अ कुविअ-परिमाणे । दुपए-चउप्पयम्मि अ, पडिक्कमे देसि सव्वं ||१८||
चित्र (समझ-) गाथा ७ : भोजन समारंभ के दृश्य द्वारा रसोई करनी, करवानी तथा छः कायकी जीवहिंसा बतायी है। गाथा ९-१० : पूर्वकालमें जानवर को संपत्तिरूप गिना जाता था अतः जानवर के चित्र बताये हैं । आज के समय गलीमें भटकते कुत्ते-बिल्ली, घर के नौकर-चाकर आदि के साथ जो व्यवहार होता है वह भी इस में गिन लेना । पाँचवे चित्र में चारा-पानी खाते-पीते घोड़े में से एक-एकका मुंह चमड़े से बाँधा हुआ दिखाया है। गाथा ११-१२ : विवाह योग्य स्त्री, जमीन तथा गाय-बड़े झूठ के ये तीन कारण बताये हैं | न्यासापहार में धनवान व्यक्ति के साथ शालीन व्यवहार करके कमजोर की अमानत को पचाता हुआ शठ व्यापारी बताया है । मोसुवएसेमें गामके चौराहे पर बैठकर व्यर्थ बातें करके झूठी सलाह देनेवाले आदमी बताये हैं। गाथा १३-१४ : चोरी का माल (सस्तेमें मिलता होनेसे) लेनेवाला व्यापारी उसे प्रेरणा देनेवाला बताया है | आजके युगमें चोरबाजार या नीलामी का माल लेनेवालों को सावधान बनना चाहिये । गाथा १५-१६ : वेश्या के घर जाता हुआ कामी पुरूष, विवाह करण, कामचेष्टा आदि में तमाम अतिचारों का समावेश कर लिया है।
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