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- जगचिंतामणि सुत्र (भाग-२) कम्मभुमिहि०, जयउ सामिय० (चालु)
(३) कम्मभूमिहिं कम्मभूमिहिं पढम संघयणि (अर्थ-) सब कर्मभूमिओं में (मिलकर) वज्रऋषभनाउक्कोसय सत्तरिसय जिणवराण विहरंत लब्भइ । राच संघयण वाले उत्कृष्ट १७० जिनेश्वर विचरते नवकोडिहिं केवलीण, कोडिसहस्स नव साहु गम्मइ । हुए मिलते हैं, उत्कृष्ट ९ क्रोड केवलज्ञानी, ९००० संपइ जिणवर वीस, मुणि बिहु कोडिहिं वरनाण, क्रोड साधु पाये जाते हैं । वर्तमानमें २० जिनवर, २ समणह कोडि सहस्स दुअ,
क्रोड केवलज्ञान वाले मुनि, व २००० क्रोड साधु थुणिज्जइ निच्चविहाणि ।।
है । नित्य प्रातः काल में (उनकी) स्तुति की जाती है । (४) जयउ सामिय ! जयउ सामिय ! हे स्वामिन्-आपकी जय हो, आपकी जय हो, रिसह ! सत्तुंजि, उज्जिति पहु-नेमिजिण ! शत्रुजय पर हे स्वामिन् ऋषभदेव ! गीरनार पर हे जयउ वीर ! सच्चउर-मंडण !
प्रभो नेमिजिन ! साचोरि के श्रृंगार हे महावीर प्रभो !, भरुअच्छहिं मुणिसुव्वय !
भरुच में हे मुनिसुव्रत जिन ! मथुरा में दुःख व पाप महुरि पास ! दुह-दुरिअ-खंडण !
के नाशक हे पार्श्वनाथ ! आप की जय हो । (समझ-) श्री अजितनाथ प्रभु के काल में अन्य ४ भरत व ५ ऐवत क्षेत्रों में भी १-१ भगवान यों १०, तथा ५ महाविदेह में प्रत्येक में मेरु के पूर्व-पश्चिम में १६-१६ भगवान यों ३२४५ = १६० प्रभु, कुल मिल के १७० भगवान विचरते थे । चित्र में भगवान के नीचे ९ क्रोड केवलज्ञानी बताये हैं, उनके नीचे ९००० क्रोड मुनि ध्यानस्थ बताये हैं। वर्तमान काल में प्रत्येक महाविदेह में मेरु के दो बाजू २-२, एवं कुल २० भगवान, २ क्रोड केवली व २० अरब मुनि देखना हैं । ('कम्मभूमिहिं०' का चित्र पीछे)
'जयउ सामिय.' का चित्र सामने है । चित्र में दिखाये अनुसार 'रिसह ! सत्तुंजि' बोलते ही मन के सामने तीर्थाधिराज शत्रुजय व उपर श्री ऋषभदेव प्रभु आवें । एवं 'उज्जिति०...' आदि बोलते समय क्रमशः गीरनार-साचोरभरुच-मथुरा में क्रमशः श्री नेमनाथ-महावीरस्वामी-मुनिसुव्रत स्वामी-पार्श्वनाथ आंतरदृष्टि सम्मुख आवें ।
सुअदेवया-स्तुति सूत्र
★ जिनकी श्रुतसागर पर भक्ति है, उन के सुअदेवया भगवई नाणावरणीअ-कम्म-संघायं ।
ज्ञानावरण कर्मों के समूह पूज्य श्रुतदेवी सदा
क्षय करती रहें। तेसिं खवेउ सययं, जेसिं सुअ-सायरे भत्ती ||१||
★ जिस के क्षेत्र में साधुओं चारित्रसहित दर्शनखित्तदेवया-स्तुति सूत्र ज्ञान द्वारा मोक्षमार्ग की साधना करते हैं वह जीसे खित्ते साहू, दंसण-नाणेहिं चरण-सहिएहिं ।
(क्षेत्राधिष्ठायिका) देवी विघ्नों को दूर करे । साहंति मुक्खमग्गं सा देवी हरउ दुरिआई ।।१।।
★ कमलपत्र जैसे विशाल नेत्र वाली, कमल
समान मुखवाली, कमल के मध्य भाग जैसी कमल-दल स्तुतिसुत्र (त्रियों के लिए)
गौर (उज्ज्व ल) व कमल पर बैठी हुई पूज्य कमल-दल-विपुल-नयना, कमल-मुखी कमलगर्भ-समगौरी । श्रुतदेवी सिद्धि दे। कमले स्थिता भगवती, ददातु श्रुतदेवता सिद्धिम् ||१|| * श्रेष्ठ सुवर्ण-शंख-मूंगे-मरकतमणिवरकनक सुत्र
मेघ के समान (पीत-शुक्ल-रक्त-हरित्
कृष्ण वर्णवाले), मोहरहित व सर्व देवों वर-कनक-शंख-विद्रुम-मरकत-घनसन्निभं विगतमोहं ।
से पूजित १७० जिनेंद्रो को वन्दना सप्ततिशतं जिनानां, सर्वामरपूजितं वंदे ||१||
करता हूं।
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