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युगों युगों तक अमररहेगागुरुभुवनभानु का नाम
बीसवीं सदी में जिनशासन के गगन में सूर्य की तरह चमकता हुआ प्रकाशमान व्यक्तित्व था-संघहितचिन्तक, शासन-सेवा के अनेक कार्यों के आद्य प्रणेता, तप-त्याग-तितिक्षामूर्ति आचार्यदेव श्रीमद् विजय भुवनभानुसूरीश्वरजी म.सा. का अपनी भक्ति, विरक्ति व बुद्धि से समस्त जिनशासन की काया पलट देनेवाले, हजारों जीवों का अज्ञान का अंधकार मिटानेवाले व मिथ्यात्वमोहादि क्षुद्र जंतुओं को दूर करके आत्मशुद्धि व आत्मसिद्धि के सोपान पर चढ़ानेवाले, चौथे आरे की प्रतीति करानेवाले पूज्य गुरुदेवश्री में नाम के अनुरुप ही गुण थे । एक कवि ने कहीं पर लिखा है....मैं उस खुदा की तलाश में हूँ मेरे यारों,
जो खुदा होते हे भी अपना-सा लगे । मैं इन पंक्तियों को कुछ अलग ढंग से पेश करना चाहूँगा...में ऐसे गुरु को पा चुका हूँ मेरे यारो,
जो अपना-सा होते हुए भी खदा सा लगे । हमारे जैसा ही औदारिक शरीर होते हुए भी पूज्यपाद गुरुदेवश्री ने छोटी-सी जिन्दगी में शासन के जो महान कार्य किये हैं, साधना की ऊँचाईयों को पाया है, कुसंस्कारों के साथ संघर्ष करके उन्हें परास्त करके आत्मशुद्धि प्राप्त की है, वह देखते हुए तो ऐसा ही लगता है कि क्या इस विषम बीसवीं सदी में ऐसा चारित्र, ऐसा सत्त्व, ऐसा भगीरथ पुरुषार्थ, ऐसी साधना संभव है ? हमारे बीच आकर उन्होंने इतना महान व्यक्तित्व विकसित किया होगा? उन्हें मानव कहा जाय, महामानव कहा जाय या परम मानव ?
पूज्यश्री के व्यक्तित्व को संपूर्ण रुप से प्रकट करना तो अत्यन्त कठिन ही नहीं, शायद असंभव भी है । पूज्यश्री के गुणों की आंशिक अभिव्यक्ति के लिए भी ग्रंथों के ग्रंथ भर जायें ।
चलिये, पूज्य गुरुदेव की जीवन-यात्रा के मुख्य अंशों पर एक नज़र करें । सांसारिक नाम : कान्तिभाई माताजी : भूरीबहन पिताजी : चिमनभाई जन्म : चैत्र वद६, वि.सं. १९३७, दि. १९-४-१९११, अहमदाबाद शिक्षा : G.D.A. (C.A. के समकक्ष), दीक्षा : संवत् १९९१ पोष सुद १२, दि. १६-१२-१९३४, चाणस्मा, छोटेभाई पोपटभाई के साथ बडी दीक्षा : संवत् १९९१, माद्य सुद १०, चाणस्मा प्रथम शिष्य : पू. मुनिराज श्री पद्मविजयजी म.सा. (बाद में पंन्यास) गुरुदेवश्री : सिद्धान्तमहोदधि प.पू. आचार्यदेव श्रीमद् विजय प्रेमसूरीश्वरजी म.सा. गणिपद : सं. २०१२, फाल्गुण सुद ११, दि. २२-२-१९५६, पूना पंन्यासपद : सं. २०१५, वैशाख सुद६, दि. २-५-१९५९, सुरेन्द्रनगर. आचार्यपद : सं. २०२९, मगसर सुद २, दि. ७-१२-१९७२, अहमदाबाद १०० ओली की पूर्णाहूति : सं. २०२६, आश्विन सुद १५, दि. १४-१०-१९७०, कलकत्ता १०८ ओली की पूर्णाहूति : सं. २०३५, फाल्गुण वद १३, दि. २५-३-१९७९, मुंबई.
विशिष्ट गुण : आजीवन गुरुकुलवास सेवन, संयमशुद्धि, ज्वलंत वैराग्य, परमात्मभक्ति, क्रियाशुद्धि, अप्रमत्तता, ज्ञानमग्नता, तप-त्याग-तितिक्षा, संघ वात्सल्य, श्रमणों का जीवन-निर्माण, तीक्ष्ण शास्त्रानुसारिणी प्रज्ञा.
शासनोपयोगी विशिष्ट कार्य : धार्मिक शिक्षण शिबिरों के द्वारा युवापीढी का उद्धार, विशिष्ट अध्यापन शैली व पदार्थ संग्रह शैली का विकास, तत्त्वज्ञान व महापुरुष महासतियों के जीवन-चरित्रों को जन-मानस में प्रचलित करने के लिये चित्रों के माध्यम से प्रस्तुति, बाल-दीक्षा प्रतिबंधक बिल का विरोध, कत्लखाने को ताले लगवाये, 'दिव्यदर्शन' साप्ताहिक के माध्यम से जिनवाणी का प्रसार, संघ-एकता के लिये जबरदस्त पुरुषार्थ, अनेकान्तवाद के आक्रमणों के सामने संघर्ष, चारित्र-शुद्धि का यज्ञ, अमलनेर में सामूहिक २६ दीक्षा, मलाड में १६ दीक्षा आदि ४०० दीक्षाएँ अपने हाथ से दी, आयंबिल के तप को विश्व में व्यापक बनाया.
फलात्मक सर्जन : जैन चित्रावलि, महावीर चरित्र, प्रतिक्रमण सूत्र-चित्र आल्बम, गुजराती-हिन्दी बालपोथी, महापुरुषों के जीवन चारित्रों की १२ व १८ तस्वीरों के दो सेट, कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्रसूरि महाराज के जीवन-चित्रों का सेट, बामणवाडाजी में भगवान महावीर चित्र गेलेरी, पिंडवाडा में पू. आचार्यदेव श्रीमद् विजयप्रेमसूरीश्वरजी म.सा. के जीवन-चित्र, थाणा-मुनिसुव्रत स्वामी जिनालय में श्रीपाल-मयणा के जीवन-चित्र आदि
प्रिय विषय : शास्त्र-स्वाध्याय घोष, साधु-वाचना, अष्टापद पूजा में मग्नता, स्तवनों के रहस्यार्थ की प्राप्ति, देवद्रव्यादि की शुद्धि, चांदनी में लेखन, बीमारी में भी खडे खडे उपयोग-पूर्वक प्रतिक्रमणादि क्रियायें, संयम जीवन की प्रेरणा, शिष्य परिवार से संस्कृत प्राकृत ग्रंथों का विवेचन करवाना.
तप साधना : वर्धमान तप की १०८ ओली, छट्ठ के पारणे छट्ठ, पर्वतिथियों में छट्ठ, उपवास, आयंबिल आदि, फ्रूट, मेवा, मिठाई आदि का आजीवन त्याग
चारित्र पर्याय: ५८ वर्ष, आचार्य पद पर्याय : २० वर्ष, कुल आयुष्य : ८२ वर्ष, कुल पुस्तक : ११४ से अधिक स्व हस्त से दीक्षा-प्रदान: ४०० से अधिक, स्वहस्त से प्रतिष्ठा : २०, स्व-निश्रा में उपधान : २० स्व हस्त से अंजनशलाका : १२, कुल शिष्य प्रशिष्य आज्ञावर्ती परिवार : ३५० कालधर्म : सं. २०४९, चैत्र पद १३, दि. १९-४-१९९३, अहमदाबाद
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