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राइमई रिसिदत्ता, पउमावइ अंजणा सिरिदेवी ।
जिट्ठ सुजिङ मिगावइ, पभावई चिल्लणादेवी ||९||
११. राजिमती उग्रसेन राजाकी सौंदर्यवान पुत्री व नेमिनाथ प्रभु की वाग्दत्ता । हिरणों की पुकार सुनकर नेमिकुमार वापिस लौट गये। मनसे उनका ही शरण स्वीकारकर सतीत्व का पालन किया व चारित्र लिया। श्री नेमिनाथ प्रभु के लघुबंधु रथनेमि गुफामें इनको निर्वस्त्र अवस्थामें देखकर चलित बने तब सुंदर हितशिक्षा देकर संयममें पुनः स्थिर किया निर्मल संयमपालन कर कर्मक्षय करके मुक्तिपद प्राप्त किया ।
१२. ऋषिदत्ता : हरिषेण तापस की अत्यंत सौंदर्यवती पुत्री व राजा कनकरथ की धर्मपत्नी । पूर्वकृत कर्म के उदयसे शोक्यने सुलसा योगिनी द्वारा डाकिनी का कलंक चढ़वाया। उसके कारण बहुत कष्ट सहने पड़े परंतु प्रभुभक्ति व शीलधर्म के प्रभाव से तमाम कष्टों में से पार उतरी व अंतमें संयमी बनकर सिद्धिपद की स्वामिनी बनी ।
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१३. पद्मावती : चेटकराजा की पुत्री व चंपापुरी के महाराजा दधिवाहन की धर्मपत्नी सगर्भावस्थामें "हाथी की अंबाडी पर बैठकर राजाके पास छत्र पकडाउं व स्वयं वनविहार करूँ'' ऐसा दोहद उत्पन्न हुआ। उसे पूर्ण करने हेतु राजा हाथी पर बिठाकर वनविहार कराने गया परंतु अरण्य को देखकर हाथी भागने लगा। राजा तो एक वृक्ष की डाली को पकडकर लटक गये किंतु रानी वैसा कर न पायी । हाथी पानी पीने खडा रहा तब उतरकर तापस के आश्रममें गई । वहाँ श्रमणियों का परिचय होते गर्भ की बात बताये बिना दीक्षा ले ली। फिर गुप्त रीत से बालक को जन्म देकर स्मशानमें छोड़ दिया। वही प्रत्येकबुद्ध करकंडू बने । एकबार पिता-पुत्र का युद्ध हो रहा है यह जानकर पद्मावती ने सत्य बात बताकर युद्धविराम करवाया । निर्मल चारित्र पालकर आत्मकल्याण किया ।
१४. अंजनासुंदरी : महेन्द्र राजा व हृदयसुंदरी रानी की पुत्री, पवनंजयकी धर्मपत्नी । छोटीसी बात को बड़ा स्वरूप देकर विवाह से लगातार बाईस वर्ष तक पवनंजय ने इन्हें छोड़ दिया था। फिर भी अखंड शीलपालन व धर्मध्यान किया । युद्धमें गये हुए पति को चक्रवाक मिथुन की विरह-विह्वलता देखकर पत्नी की स्मृति हुई । गुप्तरीत से अंजना के पास आये परंतु उस मिलन का परिणाम आपत्तिजनक निकला । गर्भवती बनते ही "कुलकलंकिनी है ऐसा जाहिर कर सास श्वसुर ने पिताके घर भेज दिया। वहाँ से भी वनमें भिजवायी वनमें तेजस्वी "हनुमान" पुत्र को जन्म दिया। शीलपालनमें तत्पर सती को खोजने निकले हुए पति को वरसों बाद अति परिश्रम द्वारा पत्नी-पुत्र का मिलन हुआ। अंतमें दोनों ने चारित्र लेकर मुक्तिपद पाया । १५. श्रीदेवी : श्रीधरराजाकी परम शीलवती स्त्री । विद्याधर व देव ने अपहरण करके शीलसे डगाने की बहुत कोशिश की परंतु वे पर्वत की तरह निश्चल रही अंतमें चारित्र लेकर पाँचवे देवलोक में गयी।
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१६. ज्येष्ठा : चेटक महाराजा की पुत्री, प्रभुवीर के बड़े भाई नंदीवर्धन राजा की धर्मपत्नी व प्रमुवीर की बारहव्रतधारी श्राविका । उनके अटल शील की प्रशंसा शक्रेन्द्रने की एक देवने शील से डगाने की बहुत ही भयंकर कसौटी की, परंतु शुद्धतासे पार उतरने से महासती जाहिर हुई। दीक्षा लेकर कर्मक्षय करके शिवनगर (मोक्ष) में पधारी ।
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१७. सुज्येष्ठा चेटक की पुत्री संकेतानुसार इन्हें लेने आया हुआ श्रेणिक राजा भूल से इनकी बहन चेल्लणा को लेकर चला गया । अतः वैराग्य पाकर श्री चंदनबालाजी के पास दीक्षा ली। एक बार छत पर आतापना ले रहे थे तब उनके रूप में मोहित बने हुए पेढाल विद्याधर ने भ्रमर का रूप धारण करके योनिप्रवेश किया। उसमें अनजानपन से शुक्र रखने से गर्भ रहा परंतु ज्ञानी महात्माओं ने सत्य बात प्रकाशित कर शंका का निवारण किया। तीव्र तपश्चर्या करके कर्मों का क्षय करके मोक्ष में गये । १८. मृगावती चेटकराजा की पुत्री व कौशांबी नरेश शतानीक की धर्मपत्नी रूपलुब्ध चंडप्रद्योत ने चढ़ाई की तब शतानिक का उसी रात्रिमें अपस्मारक रोग में मृत्यु हो गया। भोग की आशा दिखाकर चंडप्रद्योत के पास से ही अत्यंत दृढ दुर्ग बनवाया, धन-धान्य भरवाया बाद में दुर्ग के दरवाजे बंध करवा दिये और प्रभुवीर का इन्तजार करने लगी। प्रभु के पधारते दरवाजे खुलवा दिये । देशना सुनकर वैराग्य पाकर दीक्षा ली। एकबार सूर्य-चंद्र मूल विमान से भगवान का दर्शन के लिए आये तो प्रकाश के कारण रात्रि का ध्यान न रहा व वस्ती में आते देर हो गई। आर्या चन्दनबाला ने उपालम्भ दिया तब पश्चात्ताप करते करते केवलज्ञान प्राप्त किया।
१९. प्रभावती चेटकराजा की पुत्री व सिंधु सौवीर के राजर्षि उदायन की धर्मपत्नी कुमारनंदी देव द्वारा बनायी हुई प्रतिमा जीवितस्वामी की पेटी इनके हाथों से खुली । परमात्मा को मंदिरमें रखकर प्रतिदिन अपूर्व जिनभक्ति करती थी । एकबार दासी के पास मंगवाये हुए वस्त्र मंगवाये हुए वर्ण के होने पर भी अन्य वर्ण के दिखे तथा नृत्यभक्ति करते समय शरीर मस्तक बिना का देखने से मृत्यु नजदीक है यह जानकर प्रभुवीर के पास दीक्षा लेकर देवलोकमें गयी । २०. वेल्लणा चेटक राजा की पुत्री व श्रेणिकराजा की पत्नी प्रभु महावीर की परम धर्मानुरागी श्राविका । एकबार ठंडी की मौसम में तीव्र ठंड थी उस वक्त तालाब के किनारे खुल्ले बदन से संपूर्ण रात्रि कायोत्सर्ग ध्यान में रहनेवाले साधु की चिंता की तब श्रेणिक को चेल्लणा के शील पर शंका हुई किन्तु प्रभुवीर के वचन से अखंड शीलवती जानकर संदेह दूर हुआ । सुंदर आराधना कर आत्मकल्याण किया ।
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