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सुलसा चंदणबाला, मणोरमा मयणरेहा दमयंती ।
नमयासुंदरी सीया, नंदा भद्दा सुभद्दा य ||८|| १.सुलसा : राजा श्रेणिक की सेना के मुख्य सारथि (रथिक) नागरथ की धर्मपत्नी । प्रभु महावीर के प्रति परमभक्ति व श्रद्धा धारण करती थी । देव की सहायता से ३२ पुत्र हुए थे जो श्रेणिक की रक्षा करते समय एकसाथ मृत्यु पाए । भवस्थिति का विचार कर स्वयं शोकमग्न न बनी व पति को भी शोकातुर बनने न दिया । प्रभुवीर ने अम्बड़ के साथ सुलसा को "धर्मलाभ" कहलाया। तब अम्बडने इन्द्रजाल से ब्रह्मा, विष्णु, महेश तथा तीर्थंकर के समवसरण की ऋद्धि प्रसारित की, किन्तु सुलसा धर्म से तनिक भी विचलित न बनी । अतः घर आकर "धर्मलाभ" पहुँचाए । देवने सम्यक्त्व परीक्षा में लक्षपाक तेल के ४ बोतल फोड़ दिये फिर भी क्रोधित न बनी । मृत्यु बाद देवलोक में गई । आनेवाली चोबीसी में निर्मम नामक पंद्रहवें तीर्थंकर बनेगी। २.चंदनबाला : चंपापुरीके दधिवाहन राजा व धारिणी रानी की कुलदीपिका | कौशांबी के राजा शतानिक की चढाई से पिताजी भाग चले । माताने शीलरक्षणार्थे बलिदान दिया । चंदना बाजारमें बिकी | धनावह शेठ ने खरीदकर बेटी की तरह घरमें रखा परंतु श्रेष्ठि की पत्नी मूला को शंका हुई कि सेठ इसे अपनी पत्नी बना दे तो ? अतः चंदना का सिर मुंडवाया, पाँव में बेडियाँ डाली व एक तलघर में बंध कर दी । तीन दिन के बाद शेठ को पता चला तब उसे बाहर निकाला व सूपड़े में उड़द के बाकले (उबाले हुए उड़द) देकर बेडियाँ तुडवाने के लिए लुहार को बुलाने गया । वहाँ तो प्रभुवीर के अभिग्रह की पूर्ति हुई व प्रभु को बाकले वहोराते पंच दिव्य प्रगट हुए । अंत में प्रभुवीर के हाथों से दीक्षित बनकर ३६,००० साध्वियों की प्रधान साध्वी बनी व क्रमश: केवली बनकर मोक्ष में गई। ३.मनोरमा: सुदर्शन सेठ की प्रतिव्रता पत्नी जिनके काउसग्ग ध्यानने शासनदेवता को सहाय के लिए आकर्षित किया । ४.मदनरेखा : मणिरथ राजा के लघुबंधु युगबाहु की अत्यंत स्वरूपवती सुशील पत्नी । मणिस्थ ने मदनरेखा को विचलित करने के लिए अनेक प्रयत्न किये पर वे व्यर्थ गये । अंत में युगबाहु का खून करवाया । अंत समय में पति को अद्भूत समाधि दी व स्वयं भाग गयी । अरण्यमें जाकर एक पुत्र को जन्म दिया जो आगे जाकर नमि राजर्षि बने । पश्चात् मदनरेखाने चारित्र ग्रहण करके आत्मकल्याण किया । ५.दमयंती: विदर्भ नरेश भीमराज की पुत्री व नलराजा की धर्मपत्नी । पूर्वभवमें अष्टापद तीर्थ पर २४ भगवान को सुवर्णमय तिलक चढाये थे इसलिए जन्म से ही उसके कपालमें भी स्वयं प्रकाशित तिलक था । नलराजा जुएमें हार जाने से दोनों ने बनवास में रहना पसंद किया । वहाँ दोनो के बीच बारह साल का वियोग हुआ । अनेक संकटों के बीच शीलपालन किया व अंतमें नल के साथ मिलन हुआ | चारित्र अंगीकार कर स्वर्गवासी बनी । दूसरे भवमें कनकवती नामक वसुदेव की पत्नी बनकर मोक्षमें गई। ६.नर्मदासुंदरी: सहदेव की पुत्री व महेश्वरदत्त की पत्नी । स्वपरिचय से सास-श्वसुर को दृढ़ जैनधर्मी बनाया । साधु पर पानका थूक गिरने से पतिवियोग की भविष्यवाणी हुई । पतिवियोग से शील पर अनेक आपत्तियाँ आयी किन्तु सब कष्टों का सामना करके शीलरक्षा की | चारित्र लेकर अवधिज्ञानी बनी व प्रवर्तिनी पद पर आरूढ़ बनी । ७.सीता : विदेहराजा जनक की पुत्री और श्री रामचंद्रजी की पत्नी । सौतेली सास कैकयी को दशरथ ने दिये हुए वरदान पालन हेतु पति के साथ वनवास स्वीकारा । रावण ने अपहरण किया । विकट परिस्थिति में भी शीलरक्षा की । लंका के युद्ध के बाद अयोध्या वापस लौटे, वहाँ लोकापवाद (लोकनिंदा) होनेसे रामचंद्रजीने सगर्भावस्थामें जंगलमें छोड दी । दो संतानों को जन्म दिया । संतानोने पिता और चाचा के साथ युद्ध करके पराक्रम दिखाकर पितृकुल को ज्ञात किया, फिर अग्निपरीक्षा दी । विशुद्ध शीलवती जाहिर होते ही तुरंत चारित्र लेकर बारहवे देवलोकमें पधारी । बादमें रावण का जीव जब तीर्थंकर बनेगा तब गणधर बनकर मोक्षमें पधारेंगे। ८.नंदा: श्रेणिकराजा पितासे रूठकर गोपाल नाम धारण कर बेनातट गये तब धनपति श्रेष्ठि की पुत्री नंदा से विवाह किया । नंदा का पुत्र था अभयकुमार | जिसने सालों के वियोग बाद माता-पिता का मिलन करवाया । अखंड शीलपालन कर आत्मकल्याण किया । ९.भद्रा : शालीभद्र की माता-जैनधर्मकी परमानुरागी । पति-पुत्र वियोगमें विशुद्धशील का पालन करके आत्मकल्याण किया। १०.सुभद्रा : जिनदास पिता व तत्त्वमालिनी माता की धर्मपरायण सुपुत्री । इनके ससुरालवाले बौद्धधर्मी होने के कारण इन्हें अनेक प्रकार से सताया करते थे किन्तु ये अपने धर्म से तनिक सी भी विचलित न बनी । एकबार जिनकल्पी मुनि की आंख में गिरे हुए तिनके को निकालने से इन पर कलंक लगा । जिसको दूर करने के लिए शासनदेवी की आराधना की । दूसरे दिन नगर के सब द्वार बंद हो गये । आकाशवाणी हुई कि "जब कोई सती स्त्री कच्चे सूत के तार से बंधी चालनी द्वारा कुएँ में से जल निकालकर छाँटेगी तब इस चम्पा नगरी के द्वार खुलेंगे । नगर की सभी स्त्रियों के प्रयत्न से द्वार न खूले, अंतमें सुभद्रा ने यह कार्य कर दिखाया । फिर दीक्षा लेकर मोक्षमें पधारे।
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