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जंबुपहु वंकचूलो, गयसुकुमालो अवंतिसुकुमालो ।
धन्नो इलाइपुत्तो, चिलाइपुत्तो अ बाहुमुणी ||४|| २९.जबूस्वामी : पिता ऋषभदत्त व माता धारिणी के इस पुत्र को निःस्पृह व वैराग्यवासित होने पर भी माता के आग्रहवश ८-८ कन्याओं के साथ पाणिग्रहण करना पडा । प्रथम रात्रिमें ही सबको उपदेश देकर विरागी बनाया । उस समय ५०० चोरों के साथ चोरी करने आया हुआ प्रभव चोर ने भी प्रतिबोध पाया । दूसरे दिन ५२७ के साथ जंबूकमारने सुधर्मस्वामी के पास दीक्षा ली । इस अवसर्पिणी कालमें भरतक्षेत्र के ये अंतिम केवली बने । ३०.बकचूल : विराटदेश का राजकुमार पुष्पचूल | उसका जीवन बाल्यकाल से ही जुआ-चोरी आदि व्यसनों से व्याप्त होने के कारण लोगों ने उसका नाम वंकचूल रखा । तंग आकर पिताने उसे देश से निकाला दिया । तब वह पत्नी व बहन के साथ जंगलमें जाकर पल्लिपति बना । एक बार ज्ञानतुंगसूरिजी के आगमन समय 'किसी को उपदेश नहीं देना' इस शर्त के साथ चातुर्मास करवाया । विहार करते वक्त वंकचूलकी सरहद उल्लंघन कर आचार्य भगवंतने उसकी इच्छानुसार १) अपरिचित फल नहीं खाना २) प्रहार करने के पहले ७ कदम पीछे हटना ३) राजा की रानी के साथ सांसारिक भोग नहीं भोगना और ४) कौए का मांस नहीं खाना ये चार नियम ग्रहण करवाये । वंकचूल ने इन नियमों का दृढतापूर्वक पालन किया व अनेक लाभों को प्राप्त कर स्वर्गवासी बने । ३१.गजसुकुमाल : सात-सात पुत्र को जन्म देने पर भी एक का भी लालन-पालन न करने से खिन्न बनी हुई देवकी माता की खिन्नता दूर करते हेतु श्रीकृष्ण ने हरिणिगमेषी देव की आराधना की । एक महर्धिक देव देवकी की कुक्षी में आये, वे ही थे गजसुकुमाल | बाल्यवयमें ही वैराग्यवासित बनें परन्तु मोहपाशमें बांधने के लिए माता-पिताने विवाह करवाया । परन्तु युवावय में ही नेमनाथ प्रभु के पास दीक्षा लेकर स्मशानमें कायोत्सर्ग ध्यान में खडे रहे । "बेटी का भव बिगाडा" यह सोचकर श्वसुर सोमिलने मस्तक पर मिट्टी की पाल बांधी और धधकते हुए अंगारे चितामें से लेकर मस्तक पर रख दिये । समताभाव से अपूर्व कर्मनिर्जरा कर के अंतकृत् केवली बनकर मोक्ष में पधारे | ३२.अतिसुकमाल : उज्जयिनी नगरी के निवासी भद्रसेठ व भद्रासेठानी के पुत्र व ३२ पत्नीओं के स्वामी । एकबार आर्यसुहस्तिसूरि को अपनी यानशालामें वसति दी । तब "नलिनीगुल्म' अध्ययन सुनते जातिस्मरण ज्ञान हुआ, चारित्र लिया व स्मशान में कायोत्सर्गध्यानमें मग्न बने । सुकोमल शरीर की सुगंध से सियारनी ने बच्चों के साथ आकर इनके शरीर को काट खाया । किन्तु शुभध्यान में मृत्यु पाकर "नलिनीगुल्म" विमान में देव हुए। ३३.धन्यकुमार : धनसार व शीलवती के पुत्र । भाग्यबल व बुद्धिबल से अक्षय लक्ष्मी उपार्जित की । एक बार साला शालीभद्र की दीक्षा की भावना से पत्नी सुभद्रा रो रही थी तब "वह तो कायर है, एक-एक को छोडता है'' ऐसा उसने उपालम्भ दिया । सुभद्रा बोली की ''कहना आसान है किन्तु करना मुश्किल'' पत्नी का ऐसा बचन सुनते ही धन्यकुमार ने एक साथ तमाम भोगसामग्री त्यागकर शालीभद्र के साथ दीक्षा ली व उत्तम आराधना करके अनुत्तर देवलोकमें गये । ३४. इलाचीपुत्र : इलावर्धन नगर के इभ्य सेठ व धारिणी के पुत्र । वैराग्यवासित देखकर पिताने क्षुद्र मित्रों की दोस्ती करवायी । वह लंखीकार नट की पुत्री पर मोहीत बना । नट ने नाट्यकला में प्रवीण बनाकर राजा को प्रसन्न बनाने की शर्त रखी । अतः उनके साथ बेनातट के राजा महीपाल को नटकला दिखाई । अद्भुत खेल करने लगे, किन्तु नटपुत्री पर मोहित बना हुआ राजा बार-बार खेल करवाने लगा । तब परस्त्रीलंपटता व विषयवासना पर वैराग्य आया । वहाँ अत्यंत निर्विकारभाव से गोचरी वहोरते मुनि को देखकर भक्तिभाव जागृत हुआ व क्षपकश्रेणी पर आरूढ होकर केवलज्ञान प्राप्त किया। ३५. चिलातीपुत्र: राजगृहीमें चिलाती दासी के पुत्र | धनसार्थवाह के घर नौकरी करते थे किन्तु अपलक्षण को देखकर इनको निकाला दिया गया । बाद में जंगलमें चोरों का सरदार बना । "धन तुम्हारा, श्रेष्ठी की पुत्री सुष्मा मेरी" यह तय करके चोरों के साथ डाका डाला व सब उठाकर ले चले, कोलाहल मचा, राजा के सिपाही पीछे पडे इसलिए धन की पोटलियाँ वहीं पर छोड दी और सुष्मा का मस्तक काटकर धड भी वहीं छोडकर भागा । रास्ते में मुनिराज मिले मुनिराज को तलवार की धार दिखाकर धर्म पूछा तब "उपशम, विवेक, संवर"ये तीन पद देकर मुनिराज चारणलब्धि से उड गये । तीन पदों का ध्यान करते करते वहीं शुभध्यान मग्न बने थे तब खून की गंध से चिंटीया आ पहुँची व काटने लगी । उपद्रव सहन करके स्वर्गवासी बने । ३६.युगबाहुमुनि : पाटलिपुत्र के विक्रमबाहु राजा व मदनरेखा रानी के पुत्र । सरस्वती देवी व विद्याधरों की कृपा से अनेक विद्याएँ प्राप्त की । चार प्रश्नों के प्रत्युत्तर देने की प्रतिज्ञा पुतली के पास से पूर्ण कर अनंगसुंदरी के साथ विवाह किया । अंतमें चारित्र लेकर ज्ञानपंचमी की आराधना करके केवलज्ञानी बने । भव्य जीवों पर उपकार कर मोक्ष में पधारे।
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