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सिव-मयल-मरुअ मणंत-मक्खयमव्वाबाह-मपुणरावित्ति सिद्धिगइ-नामधेयं ठाणं संपचाणं, नमो जिणाणं जिअभयाणं॥ ९ ॥ जे अ अईया सिद्धा, जे अ भविस्संति णागए काले, संपइ अ वट्टमाणा, सव्वे तिविहेण वंदामि ॥ १० ॥
शब्दार्थ । नमुत्थु
नमस्कार हो
[यह पद वाक्यशोभार्थ है] अरिहंताणं
अरिहंतों को भगवंताणं
भगवंतो को आइगराणं
(धर्म के) आदिकर्ताओं को तित्थयराणं
तीर्थंकरों को सयं-संबुद्धाणं स्वयं सम्यग् बोध पानेवालों को पुरिसुत्तमाणं
जीवों में उत्तमों को पुरिससीहाणं - जीवों में सिंह-तुल्यों को पुरिस-वरपुंडरियाणं - जीवों में श्रेष्ठ कमल समान को पुरिस-वरगंधहत्थीणं - जीवों में श्रेष्ठ गंधहत्थी जैसों को लोगुत्तमाणं
सकल भव्यलोक में उत्तम को लोगनाहाणं
चरमावर्त-प्राप्त जीवों के नाथ को लोगहियाणं
पंचास्तिकाय लोक के हितकारी को
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