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जे ए लोगस्स उत्तमा सिद्धा
आरुग्ग
बोहिलाभ
समाहिवरं
उत्तमं दितु चंदेसु निम्मलयरा आइच्चेसु अहियं पयासयरा सागरवरगंभीरा
सिद्धा सिद्धि मम दिसंतु
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लोक में जो ये उत्तम सिद्ध भावआरोग्य (मोक्ष) के लिए बोधिलाभ
श्रेष्ठ (भाव) समाधि
उत्तम दीजिए
चन्द्रमा से अधिक निर्मल
सूर्यों से
अधिक प्रकाश देनेवाले श्रेष्ठ सागर से भी गंभीर हे सिद्ध भगवंतों !
मुझे मोक्ष प्रदान करो भावार्थ
लोक अर्थात् धर्मास्तिकाय आदि पाँच अस्तिकायरूप विश्व का ज्ञान करनेवाले, 'धर्म-तीर्थ' (धर्मशासन) के संस्थापक, राग-द्वेषादि के विजेता जिन व अष्ट प्रातिहार्यादि के योग्य अरिहंत, केवलज्ञान के द्वारा पूर्णता 'यानी' परमात्मभाव को प्राप्त करनेवाले चौबीस तीर्थंकरों की भी ( अन्य तीर्थंकरों के साथ) मैं उनका नाम लेकर स्तुति करूँगा ॥ १ ॥
श्री ऋषभदेव व श्री अजितनाथ को वंदन करता हूँ, श्री संभवनाथ, श्री अभिनंदनस्वामी, श्री सुमतिनाथ, श्री पद्मप्रभस्वामी, श्री सुपार्श्वनाथ तथा श्री चन्द्रप्रभस्वामी को मैं वंदन करता हूँ ॥ २ ॥
श्री सुविधिनाथ अथवा पुष्पदंत, श्री शीतलनाथ, श्री
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