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________________ प्रकाशकीय निवेदन सिद्धि के लिए साधन और साधना दोनों अनिवार्य हैं। साधनार्थ के लिए ज्ञान और क्रिया दोनों आवश्यक हैं । ज्ञानयुक्त क्रिया मोक्षमार्ग है । मोक्ष के निमित ज्ञान और क्रिया आवश्यक ही नहीं अपरिहार्य है। ज्ञान अर्थात् श्रुतज्ञान । इस श्रुतज्ञान के विषय में उल्लेख है, 'श्री अरिहंत भगवान् अर्थ का कथन करते हैं। गणधर भगवान् भव्य आत्माओं के कल्याण के उदेश्य से कुशलतापूर्वक उस अर्थ की रचना सूत्र रूप में करते हैं। फलतः श्रुत प्रवर्तित होता है। __ श्री भद्रबाहु स्वामी ने श्रुतज्ञान का परिचय देते हुए कहा है कि 'सामायिक से लेकर बिंदुसार (चौदहवें पूर्व) तक सूत्रों व तदर्थ का ज्ञान श्रुतज्ञान है । इस श्रुतज्ञान का सार चारित्र है । चारित्र का सार या निचोड निर्वाण (मोक्षसुख) है।' पूज्य तीर्थंकरों ने ऐसे अर्थ की प्ररूपणा की जो भव्य जीवों की निर्वाण-प्राप्ति में साधन भूत हो। इसीलिए वे हमारे सर्वप्रथम उपकारी है। गणधर भगवंतों ने उस अर्थ को सूत्ररूप में हमें प्रदान किया व श्रीगुरु भगवंतों ने हमें उन सूत्रों का अर्थ, भावार्थ तथा महत्त्व समझाया। अतः वे भी हमारे उपकारी हैं। इन उपकारी महापुरूषों को वंदना, स्तुति, पूजा आदि करने में अपनी Jain Education International For Private & Personal Use Only. www.jainelibranz.org
SR No.003232
Book TitleAradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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