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श्री श्रेयांस जिन स्तवन श्री महावीर प्रभु के स्तवन गौतम विलाप स्तवन रुडी ने रढीयाळी रे.... स्तवन
जिनोपदेश (थोय) • प्रेमनुं अमृत पावूछे स्तुति (थोय) विभाग
१४
१४२
[१४४ से १४६] [१४६ से १५१]
• सज्झाय विभाग
पच्चक्खाण का महत्त्व गंठिसहियं पच्चक्खाण का महत्त्व नवकारशी और शाम का पच्चक्खाण चौबीस तीर्थंकरों के नामादि आरती - मंगल दीवो
कुंजर समा शूरवीर जे छे सिंहसम निर्भय वली गंभीरता सागर सभी जेना हृदयने छे वरी जेना स्वभावे सौम्यता छे पूर्णिमाना चन्दनी एवा प्रभु अरिहंतने पंचांग भावे हुं नमुं।
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