SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 9
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ यह सब मन में निश्चित करके रखना चाहिये । पूजा के वक्त तो सिर्फ इतनी भावना रखनी कि प्रभु! मुझे सुवासनायें मिलें । उसमें भी जो दोष स्वयं में अधिक हो, उसके सामने की सुवासना वासक्षेप करते हुए मांगने की भावना की जा सकती है । प्रभु की अष्टप्रकारी पूजा शुरु करने से पहले प्रभु के पास से जीव-जन्तु उड जाय, इसके लिए एक मोरपींछी प्रभु पर फिराना और दूसरी अलग मोरपींछी पबासण पर फिराना, बाद में प्रभु के अंग पर से निर्माल्य उतारते हुए ऐसी भावना रखना कि प्रभु! मेरी आत्मा पर से जड़पुद्गल की रागदशा के निर्माल्य उतर जायें । प्रतिदिन ऐसी भावना रखने से इसके संस्कार पडते जाते हैं।, बढते जाते हैं ।, इसका असर जीवन पर पडेगा और जड़ का राग कम होता चला जाएगा। अष्टप्रकारी पूजा में पहली अभिषेक पूजा है । Jain Education International Private Personal Use Onlyww.jainelibrary.org
SR No.003231
Book TitleAshtaprakari Navang Tilak ka Rahasya Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages50
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy