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________________ अब द्रव्यपूजा के आठ प्रकारों में से प्रत्येक प्रकार में कैसी भावना करने से उसमें उत्तम भाव मिलेगा, इस पर विचार करेंगे। ___ अष्टप्रकारी पूजा से पहले प्रात : वासक्षेप पूजा करना ; वह नवांगी पूजा नहि है, किन्तु प्रभु के ऊपर और आजुबाजु वास यानी सुगन्धवासीत चन्दनपूर्ण का क्षेप' करना अर्थात् चूर्ण डालने या बरसाने की पूजा है । वासक्षेप पूजा करते वक्त मन में यह भाव रखना है कि प्रभु ! आपके प्रभाव से इस वास की तरह मेरी आत्मा में सुवासना बरसे । कुवासना अर्थात् आहारादि संज्ञा के रुप-रस आदि विषयों के, परिग्रह-आरंभ-समारंभ के, निद्रा-आराम के, क्रोध-स्वमति-अहंत्वादि कषायों के, ओघ (गतानुगति) के तथा लोकेषणा के कुसंस्कार । इन सब कुवासनाओं को मिटाये ऐसी शुद्ध सुवासनायें मुझे मिले, ऐसी भावना Jain Education Internationat Private Personal Use Onlyww.jainelibrary.org
SR No.003231
Book TitleAshtaprakari Navang Tilak ka Rahasya Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages50
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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