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और महोदय होता है । (८) दुर्जनों द्वारा बुरा सोचा हुआ
निष्फल जाता है। (९) यश, कीर्ति और बहुमान बढता है। (१०) आनन्द, विलास, सुख, लीला और
लक्ष्मी मिलते हैं । (११) भव जल तरण, शिवसुख मिलन
और आत्मोद्धार करण सुलभ
होता है । (१२) दुर्गति के द्वारों का रोध और
सद्गति के द्वार का उद्घाटन होता है। इसी कारण से तीर्थंकरो का नाम परम निधार है, अमृत का कुप्पा है, जन-मन मोहन वेल है, रात-दिन याद करने योग्य है, प्रभु-नाम एक घडी भी
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