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(६) अक्षत पूजा
शुद्ध अखंड अक्षत ग्रही, नन्दावर्त विशाल । पूरी प्रभु सन्मुख रहो, टाली सकल जंजाल ॥
छठ्ठी अक्षत पूजा में ऐसी भावना करनी है कि, प्रभु ! जिस प्रकार अक्षत ( चावल ) बोने से नही उगते, उसमें अंकुर नही फूटते, उसी प्रकार अक्षतपूजा करते हुए मुझे भी ऐसी अक्षत जैसी स्थिति प्राप्त हो और मेरी आत्मा में अब जन्म का अंकुर न उगे । अथवा ऐसा चिन्तन भी किया जा सकता है कि, प्रभु ! अक्षत अर्थात् जिसमें क्षति न पहुँचे, जिसका क्षय न हो, वह अक्षतपूजा से मुझे अक्षयपद मिले ।
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