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अतं कब हो ? अन्त ही नहीं, इसलिए मोक्ष ही नहीं ।
(२) फिर, धर्म का उपयोग क्या ?
क्या केवल नये पापों को रोक दे, इतना ही ? नहीं, पुरानों का नाश भी करता है । इसका कारण स्पष्ट है कि यदि अशुभ भाव में पाप बंधवाने की शक्ति है तो शुभ भाव में पाप तोडने की भी शक्ति होनी ही चाहिए। बेटा अपने असद् व्यवहार से माँ-बाप के दिल में दुर्भाव पैदा करता है, तो सद्व्यवहार से उनका वह दुर्भाव मात्र दूर करता है, इतना ही नहीं, बल्कि प्रेम भी पैदा करता है | आरोग्य के नियमों को पाले तो केवल रोग ही मिटे ऐसा नहीं है, बल्कि तुष्टि-पुष्टि भी अवश्य होती है। (हष्ट-पुष्ट भी होता ही है ।) हमें पाप के विरुद्ध प्रकार का जीवन जीना चाहिए। जिससे पाप का नाश होता जाय और पाप का नियंत्रण भी हो ।
चंडसोम की प्रार्थना दीक्षा :
आचार्य महाराज ने सुन्दर मार्ग दिखाया; फलतः चंडसोम के मन को वह अँच गया । इसलिए वह हाथ जोड़कर चरणों में गिर कर कहता है - "भगवन् !तो फिर यदि मैं आपको योग्य मालूम होता होऊँ तो कृपया मुझे इस मार्ग में दीक्षित कीजिए। बस्, अब जीवनभर यही करना है। इस जीवन के भयंकर दुष्कत्यों के पाप नष्ट होने के साथ साथ लाखों जन्मो के पाप नष्ट होते हों तो सोने में सुहागा। इससे बढ़ कर क्या ? इसे कौन चूके ? मुझ पर मेहरबानी कीजिए ।"
ज्ञानी महर्षि देखते हैं कि, 'अब इसके दिल में कषाय शांत हो गये हैं, अतः यह दीक्षा के योग्य है | अतः उसे सम्यक्त्व सहित चारित्र-दीक्षा देते हैं। कषाय उपशान्त न हों, कोई क्रोध , कोई अभिमान वगैरह सुलगता रहा हो तो वह सच्ची दीक्षा नहीं पाल सकता | चंडसोम एक वक्त का पापात्मा मिटकर धर्मात्मा मुनि बना।
(चंडसोम की कथा समाप्त)
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