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________________ तीर्थो में स्नान करते हुए घूमो, तो तुम्हारे पाप की शुद्धि हो जाएगी ।" कहिये, अब यह तो सही प्रायश्चित है न ? नहीं, भीतर का पाप - मल बाहर के जल-स्नान से कैसे शुद्ध हो सकता है ? पाप का मैल आत्मा पर है और तीर्थ का स्नानजल शरीर पर गिरता है, तो उससे शरीर का मैल धुलेगा या कि आत्मा का ? ऐसा होता हो तो यह बात हुई मानों लुहारिन को प्रसूति है और कुम्हारिन घी पीए ? तो उससे लुहारिन को पुष्टि मिलेगी ? धर्म नन्दन आचार्य महाराज राजा पुरंदत्त से यह कह कर आगे बताते हैं- 'हे नृपति ! पानी से शरीर का मैल धुलता है लेकिन आत्मा पर जो पाप का मैल लगा है वह जल से कैसे साफ हो ? ऐसा कहकर आचार्य महाराज स्वयं ही जिनजिन विकल्पों को प्रस्तुत कर ऐसी नादान मान्यताओं का निराकरण करते है उन्हें इस तरह प्रश्नोत्तर रुप में रखा जा सकता है तीर्थजल से पाप धुलने के विषय में दलील और खंडन : प्र० शरीर से आत्मा अलग कहाँ रही है ? वह तो शरीर के एक एक अणु के साथ लगी हुई ही है । तो फिर तीर्थ का जल शरीर के संपर्क में आया इसलिए आत्मा के भी संपर्क में आ ही गया न ? तब उस से आत्मा का मैल भी क्यों नहीं धुले ? उ० इस तरह यदि शरीर के सम्बन्ध के द्वारा आत्मा का सम्बन्ध करने से ही तीर्थजल आत्मा का पाप मल साफ करता हो तो तीर्थ के पानी में रहनेवाले मगर आदि का तो यह सम्बन्ध दीर्घकाल से है, अतः वह धुल जाने के परिणाम स्वरूप इन सबको स्वर्ग ही मिलना चाहिए । प्र० नहीं, यों अकेले सम्बन्ध से क्या फायदा ? इन मगरों को पाप - मल धोने का विचार कहाँ आता है ? यह तो जिसके ऐसा विचार हो इसका पाप मल साफ होता है । उ० तब तो तीर्थों को गये बिना भी दूर रहे हुए लोग भी ऐसा विचार मात्र करके पापमल धोएँ और स्वर्ग में जाएँ, ऐसा क्यों नहीं होता ? प्र० नहीं, नहीं हो सकता। ऐसा न होने की वज़ह यह है कि अकेले विचार मात्र से क्या हो ? यहाँ तो 'तीर्थजल से मैं अपना पाप-मल धोऊँ ? ऐसे विशिष्ट संकल्प के साथ उस तीर्थजल को ग्रहण करे तो ही पाप - मल धुलता है । मगरों के ऐसा ग्रहण कहाँ होता है ? उ० यदि ऐसे विशिष्ट संकल्प का ही महत्व हो तो फिर पाप धोने के संकल्प २३६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003227
Book TitleKuvalayamala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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