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| परस्त्री दर्शन - रोकने का उपाय आन्तरदर्शन-आन्तरश्रवण :- । । इसी तरह उदाहरण के तौर पर समझो कि परस्त्री दर्शन का रस उछलता है; उसमें भी आजके जमाने में कामोन्माद-युक्त बड़ी लड़कियों और स्त्रियों के उद्भट वेश आँखों को आकर्षित करते हैं | जीव की इच्छा तो है ही, फिर आँखे वहाँ कैसे न जाएँ? अब इन्हें किस प्रकार रोकना? एक उपाय यह है-शुभ आन्तर दर्शन या आन्तर श्रवण किया जाय । अर्थात यह करना कि सिद्धगिरिराज जैसी किसी तीर्थयात्रा को या अति आहलादक आदीश्वर दादा जैसी जिन-प्रतिमा को मन में लाना; और क्रमशः - जैसे इसी वक्त यह यात्रा कर रहे हैं ऐसा या उस जिन बिम्ब की पूजाविधि कर रहे हैं। आँखे मूंद कर मन के भीतर देखना अथवा मानो सीमंधर भगवान ही अन्तर में पधारे हैं और समवसरण पर वाणी की वर्षा कर रहे हैं, सो हम सामने बैठे कान देकर सुन रहे हैं ऐसी कल्पना करें । मन को समझाएँ कि -
घेर बेठा पण ए गिरि गावे रे श्री ज्ञानविमल सुख पावे, नागर सज्जना रे कोई सिद्धगिरिराज भेटावे ।
'घर बैठे भावपूर्वक गिरिराज के गुणगान करे, यात्रा करे, पूजा करे यह विमल ज्ञान अर्थात केवल ज्ञान पाता है, विमल सुख - मोक्ष पाता है, तो ऐसा उच्च कोटि का लाभ कराने वाले यात्रा पूजा के अन्तदर्शन का कार्य छोड़कर नरक में परमाधामी के भाले की नोक आँख में चुभाने वाला ऐसा परस्त्री-दर्शन का अधम कार्य किसलिए करना ?' मन को यह समझाकर आँखे मूंद कर वह आन्तरदर्शन का काय या सीमंधर स्वामी को मन में साक्षात् सुनने का आन्तर श्रवण का कार्य शुरू कर दिया जाय । तो परस्त्री-दर्शन का रस फीका पड जाय और दृष्टि बिगाडने का वह कार्य बन्द हो जाय ।
चंडसोम को तो अपनी पत्नी और उस आदमी की खबर ले डालने की तमन्ना जगी है, फलतः नाटक देखते बैठे रहने का रस सूख गया है ! वह निकल पडा घर की ओर, शीघ्र पहुँच गया, दरवाजे पर उन दोनों की राह देखता खड़ा रहाकिवाड के पास छिपकर ।
यहाँ वे अनजाने स्त्री-पुरूष तो कोई आनेवाले ही नहीं थे; अतः वह राह देखकर घूरता हुआ उतावला हो रहा है कि "अभी अपनी वह पत्नी और पराया पुरूष जल्दी आएँगे कि उसी वक्त मैं उन पर अच्छी तरह बिता दूँगा" परन्तु वे जल्दी
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