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- जैसे जैसे लाभ होता जाता है, वैसे-वैसे लोभ होता जाता है | लाभ के साथ लोभ बढ़ता जाता है । दो माशा सोने का प्रयोजन था वह करोड़ों से भी पूर्ण नही हुआ । संसार के समस्त प्रयोजनों में ऐसा ही होता है । इसीलिये ऐसे प्रयोजन से इच्छा कराने वाले संसार वास से मुझे कोई काम नहीं । अब तो मैं इच्छाओं से रहित चारित्र जीवन ही पालुंगा |
कपिलमुनि केवलज्ञान पाते हैं:
बस, इतना कहकर कपिलमुनि निकल पड़े और छ मास की उत्कट तप-संयम की साधना से केवलज्ञान पाया । देवों को अभी कुछ पता नहीं है । अभी तो कोई केवलज्ञान का उत्सव मनाने के लिये भी नहीं आ रहे हैं | इतने केवलज्ञानी महर्षि कपिल भगवान तो चल पड़े जंगल की राह ! वहाँ रहनेवाले ५०० चोरों ने उन्हें घेर कर जब कहा कि 'खड़े रहिये, कुछ गाईये' तब कपिल केवली उन्हें धर्म की प्राप्ति कराने के लिये चार प्रकार की धर्मकथा का उपयोग करते हैं ।
कपिल केवली रास गवाते हैं:
उसमें पहले आक्षेपिणी कथा का उपयोग करके बोलते हैं:
'कसिण - कमलदल - लोयणचल - रेहंतओ, पीण - पिहुल - थण कडियलभार - किलंतओ | ताल - चलिर - - वलयावली - कलयल - सद्दओ. रासयम्मि जइ लब्भइ जुवई - सत्थओ।।"
“संबुज्झह किं ण बुज्झह, एत्तिए वि मा किंचि मुज्झह | कीरउ जं करियव्वयं, पुण दुक्कइ तं मरियव्वयं ।।
अर्थात् रास गाने में यदि ऐसा युवतियों का समूह मिल जाय, कि (१) जो काली कमल पत्र जैसी आँखो के कटाक्ष से शोभित हो रहा हो । (२) जो स्थूल विशाल स्तनभार और कमर के नीचे के जांघ के भार को उछलता हो, (३) तथा ताल लेते वक्त हिलते हुए जिनके कंगनों की पंक्तिओं से कलकल ध्वनि गूंज रहा हो, ऐसा युवती समूह साथ में हो, तो कैसा मजा आ जाय ?' इस प्रकार रास की
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