SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 19
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २. कथा के ४ प्रकार ४ प्रकार की कथा क्यों? शास्त्रकार कहते हैं कि जिनेश्वर देवों ने चार प्रकार की धर्मकथा कही है । इसका कारण यह है कि धर्मकथा में अनेक प्रकारके जीवों के हृदय के भावों का विचार करना होता है । यह विचार करना अर्थात् यह देखना कि 'कैसे-कैसे जीव कैसेकैसे भाव से आगे बढ़ते है और कैसे-कैसे भाव करके फिर से गिर जाते हैं.... यह विचार करना अर्थात् सहज में यह देखा जाय कि, (१) आकर्षिणी कथा : धर्म से कदम पराङ्मुख जीवों को कुछ इस प्रकार का प्रतिपादन - उद्बोधन किया जाय कि जिससे वे जीव पहले तो धर्मोपदेशक की वाणी के प्रति आकर्षित हो; कान चौकन्ने करे । वहाँ कथा के श्रोता को दिखे कि 'देखो, यह फलाँ जीवन उपदेशक से पूर्ण पराङ्मुख होने पर भी उपदेशक की इस कथा से उसके भाव कैसे बदल गये ! वह कैसा पराङ्मुख मिटकर सम्मुख हो गया है !' ऐसी कथा-ऐसे उदबोधन को आकर्षिणी (आक्षेपिणी ) कथा कहते हैं! 'कथा' अर्थात् उपदेश, प्रतिपादन, उद्बोधन, वह ऐसा हो कि श्रोता को श्रवण के प्रति आकर्षित करे, इसका नाम है आकर्षिणी कथा, आक्षेपिणी कथा | चार कथा का दृष्यन्त कपिल : आक्षेपिणी, विक्षेपिणी, संवेदनी व निर्वेदनी - इन चारों प्रकार की कथा को समझाने के लिये दृष्टान्त के रूप में, ५०० चोरों को श्री कपिल केवली महर्षि द्वारा दिया गया उपदेश प्रस्तुत करते हैं । कपिल एक ब्राह्मण विद्यार्थी है । राजा के पास सिर्फ दो माशा सोना मांगने के लिये जाता है, परन्तु वहाँ तो राजा इतना ही देने के बदले कहता है कि 'क्या चाहिये ? तुझे जो चाहिये वह मांग ।' तब कपिल लोभ में चढ़कर विचार करता है कि जब राजा मुँहमाँगा धन देने को तैयार है, तो फिर कितना मांगु? ४-८१०-२०-१००-१०००- लाख, इस तरह करते-करते वह एक करोड़ का धन मांगने के विचार तक पहुँच जाता है, परन्तु वहीं पर अचानक आघात का अनुभव करता है कि 'अरे अरे ! यह मैंने क्या किया ? लोभ में मैं कहाँ तक पहुँच गया ? यह Jain Education International 99 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003227
Book TitleKuvalayamala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy