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तिर्यंचगति में भी कैसे अवतार ?
कौआ, सियार, शेर, बाघ, चीता, बैल, बन्दर, मगरमच्छ आदि के ! इनमें भटकभटक कर जीव अति मूढ़ता से नीचे पृथ्वीकाय, अपकाय आदि जीवों की योनियों में उतर पड़ता है, यह भी तिर्यंच गति है । देव, मनुष्य और नारकी को छोड़कर शेष सब पंचेन्द्रिय जीव तथा सारे चउरिन्द्रिय, तेइन्द्रिय, बेइन्द्रिय व एकेन्द्रिय जीव तिर्यंचगति में गिने जाते हैं । उसमें ठेठ वनस्पतिकाय तक के भवों में भ्रमण करकरके कर्म की बहुत-बहुत मार खाकर उस प्रकार के कर्म के क्रम से बाहर निकलकर
बड़ी मुसीबत से मनुष्य जन्म पाता है । परन्तु वह भी कैसा ? म्लेच्छ, यवन, बर्बर, भील आदि के अवतार का । वहाँ क्या करने को मिलेगा ? पंचेन्द्रिय जीवों के भयंकर वध, मांसाहार, महा आरंभ-समारंभ आदि घोर पापों का आचरण, फिर उसके बाद क्या ? तो जाओ फिर से नरक - तिर्यंच गति में ! फिर वापस मनुष्य भव कब मिले ? . मनुष्य का अवतार सुलभ नहीं है । उसमें भी आर्यदेश, आर्यकुल आदि के पुण्य वाला अच्छा मानव भव तो अनन्त काल के भव भ्रमणों के बाद मिलेगा । उसमें भी यदि पुण्य की थोड़ी कमी रह गयी और अंधे, लूले, लंगडे, बहरे आदि का अवतार मिले, तो क्या पुरुषार्थ कर सकता है ? ।
शास्त्रकार कहते हैं कि यदि यह उत्तम मानव भव मिल गया है, तो पुरुषार्थहीन सुस्त, आलसी मत बनिये । पुरुषार्थी बनिये । पुरुषार्थहीन स्थावर वनस्पतिकाय आदि के अवतार तो अनन्त काल देखे । उनमें से बड़ी मुश्किल से छूटकर यहाँ पुरुपार्थ के योग्य भव में आने के बाद भी पुरुषार्थ नहीं ?
पुरुषार्थ तीन प्रकार के हैं:- धर्म-अर्थ-काम | परन्तु चरित्रकार कहते हैं :
| अत्थउ होइ अणत्थउ, कामो वि गलंत पेम्म विरसो य ।। सव्वत्थ दिण्णसोक्खउ धम्मो (उण) कुणह तं पयत्तेण ॥
अर्थात अर्थ (धन) से अनर्थ होते हैं, और काम (विषयसुख) भी क्षीण होते हुए प्रेम से दुःख दे फलवाल बनता है ! परन्तु धर्म तो सवत्र सुख देने वाला है, इसीलिये धर्म का उद्यम करो ।
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