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कभी उठावगीर आराधक श्रावक-श्राविका के रूप में आकर पूजारी को विश्वास में लेकर प्रभुजी के आभूषणादि की चोरी करके चले जाते हैं ।
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जो श्री संघ में / संस्था में अपना वहिवट में पिंजरापोल आदि न हो तो इनको जीवदया की रकम ऐसी पशु-पक्षी संस्था को तुरंत दे देना न्यायी रहेगा ।
अगर श्री संघ में / संस्था में देवद्रव्य / ज्ञानद्रव्य आदि की रकम खुद की जरुरियात से अधिक हो तो ऐसी रकम दूसरी जरुरियातवाले संघ/संस्था को देनी चाहिए ।
श्री संघ/संस्था के सभी मानद कार्यकर्ता/कर्मचारी वर्ग की शाख अच्छी है । (Your credit is good), लेकिन प्रभु की / संस्था की पूंजी जो दानवीर लोगो ने भाव से श्रद्धा से दान में दी हो इसका अच्छा वहिवट - सदुपयोग भी इतना जरूरी है । प्रभु की - श्री संघ की पेढी का सुंदर न्याय-नीतिसदाचारपूर्ण वहिवट करनेवालों को तीर्थंकर नामकर्म उपार्जन तक की प्राप्ति होती है यह कितनी बडी कुदरती भेंट !
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पं. भुवनसुंदरविजयजी गणी पं. गुणसुंदरविजयजी गणी वि.सं. २०६२, जेठ वद - १२
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