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सेवा संभव होती है । पृथ्वी पर अन्य पुण्यप्रदाता जो सभी तीर्थ हैं, उन सब का माहात्म्य तो वाणी के द्वारा प्रकाशित किया जा सकता है, परंतु इस तीर्थाधिराज का माहात्म्य कहने के लिए तो जगत के सर्व गुणों के ज्ञाता-दृष्टा केवली भगवान भी जानते हुए भी समर्थ नहीं हैं । (सर्ग-१) ।
भगवान श्री चंद्रप्रभस्वामी देशना में बताते हैं : सर्व प्रकार से अस्थिर इस संसार में शत्रुजय तीर्थ तथा अरिहंत का ध्यान तथा दो प्रकार का धर्म-यही साररूप है । पुंडरीकगिरि के सेवन से, श्री जिनेश्वर के ध्यान से तथा दो प्रकार के धर्म से शाश्वत सुख की सिद्धि संभव है । जिस प्रकार देवो में अर्हत्, ध्यान में शुक्लध्यान तथा व्रतों में ब्रह्मचर्य प्रधान है, उस प्रकार सर्व तीर्थों में यह तीर्थ मुख्य है । (सर्ग-८)
। भगवान श्री अजितनाथ देशना में बताते हैं : यह शत्रुजयगिरि सदा शाश्वत तथा स्थिर है तथा इस संसार-सागर में डूबते हुए प्राणियों को जीवन प्रदान करनेवाले द्वीप के समान है ।
जिसने इस गिरि की सेवा की है उसे दुर्गति का भय कैसे हो सकता है ? इस शैल की तथा शील की - इन दोनों की सेवा से उत्तम फल प्राप्त होता है, इसमें भी शील से सिद्धि का संदेह रहता है, परंतु इस शैल की सेवा से तो सिद्धि निःसंदेह प्राप्त होती है ।
इस शत्रुजय गिरि पर जो सिद्ध हुए हैं और जो सिद्ध होंगे उन सब को जानते हुए भी केवली भगवान एक जिह्वा से कह नहीं सकते। इस तीर्थ के सर्व शिखरों में, जिनेश्वरों की तरह जो, महिमा है उसे कोटि वर्षों में भी वर्णित किया नहीं जा सकता । (सर्ग-८)
भगवान श्री महावीर स्वामी बताते हैं : इस गिरिराज की छाया में जो एक क्षणभर के लिए ही रहकर अत्यंत दूर चला जाता
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