________________
|| अहिंसा णिठणा दिट्ठा सव्वभूएसु संजमो || महावीर के सिद्धान्त
अहिंसा shers there
where there is love, there is
LIFE.
अहिंसा का निरूपण जैन धर्म के अतिरिक्त अन्य धर्मों में भी मिलता है, पर अहिंसा का जितना सूक्ष्म विश्लेषण जैन धर्म में किया गया है उतना विश्व के किसी भी धर्म में नहीं। पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु, वनस्पति, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय आदि किसी भी प्राणी की मन, वचन और काया से हिंसा न करना, व करवाना, न अनुमोदना करना-जैन धर्म की अपनी विशेषता है। उसका एक ही नारा है - जीओ और जीने दो। तुम स्वयं जीना चाहते हो तो दूसरों को भी जीने दो। तुम स्वयं सुखी रहो इसमें किसी को आपत्ति नहीं परन्तु दूसरे को भी सुखी रहने दो। क्योंकि सुख पाना हर व्यक्ति का, हर प्राणी का जन्मसिद्ध अधिकार है। तुम उसके बाधक मन बनो। यदि तुम किसी को सुख नहीं पहुंचा सकते तो दुःख पहुंचाने का भी प्रयत्न मत करो। महापुरुषों ने दुःख देने की भावना एवं दुःख पहुंचाने की प्रवृत्ति को हिंसा एवं पाप कहा है। अतः किसी भी प्राणी को कष्ट नहीं देना चाहिये । अहिंसा को केन्द्र में रखकर ही सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह का निरूपण हुआ है। अहिंसा मानव मन की एक वृत्ति है, भावना है। अहिंसा मानव जीवन की महाशक्ति है। समस्त आतंकों को दूर करने वाली रामबाण औषध है।
-
23 nelibrary.org
Edition Internationala
or Private & Personal
NE