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________________ दानधर्म दूसरों को दान देते रोको नहिं । दूसरों के सुख की ईर्ष्या करो नहिं । दूसरों को ज्ञान का दान दिजीए । दूसरे जीवों को अभयदान दिजीए । इस प्रकार का दान धर्म करने से अंतराय कर्म कम होता हैं। शील धर्म शील मतलब स्वभाव... आप अपना स्वभाव कोमल और उदार बनाओ । शील मतलब सादगी... शरीर कि बहुत टापटीप मत करो । शील मतलब सभ्यता... सभ्यता से बोलो, चलो, बैठो और खडे रहो। शील मतलब सदाचार... परीक्षा में चोरी मत करो, किसी के वस्तुओं की चोरी मत करो, घर से पैसे चोरी मत करो, माता-पिता को दु:ख नहिं देना, उपकारीओं का उपकार मत भुलना, किसी से विश्वासघात मत करना, दु;खी जीवों प्रति दया भाव रखना, इस प्रकार शील धर्म की आराधना करने से शुभ नाम कर्म बंधते हैं। दूसरे जीवों को अभयदान दिजीए... www.jainelibrary.org
SR No.003223
Book TitleEnjoy Jainism
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanbodhisuri
PublisherK P Sanghvi Group
Publication Year2011
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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