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।। निर्मुक्तसङ्गनिकरं परमात्मतत्त्वम् ।।
परमात्मा का उपकार न भूलो!
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99 LOV E. I S. MAGIC. जो सर्वथा दोषमुक्त हो, वह परमात्मा है। तुम जो सुख सुविधा भोगते हो वह इन परमात्मा की कृपा का ही फल समझना। परमात्मा ने हमें पुण्य का मार्ग बताया उससे हमने शुभ कर्म कर पुण्य का उपार्जन किया। शुभ कर्म के उदय से उत्तम मानव-जन्म, उत्तम कुल, पांच इन्द्रियां, विचारक मन, माता-पिता, घर, पैसा, आरोग्य, वस्त्र, भोजन के अतिरिक्त तारक देव-गुरु का योग आदि मिले। अतः यह सब उपकार परमात्मा का ही मानना चाहिये न ? अतः इन परमात्मा के अगणित उपकारों के कारण भी तुम प्रतिदिन मन्दिर में जाकर परमात्मा की मूर्ति के दर्शन-पूजन करो। परमात्मा की मूर्ति को देखकर सत्कार्य करने की प्रेरणा लो। परमात्मा कितने पवित्र हैं और मैं कैसा दुर्गुणों से अपवित्र हूँ ऐसा विचार करना। हे प्रभो ! मैं आप जैसा शुद्ध, बुद्ध, मुक्त, निरंजन, निराकार कब बनूंगा? ऐसी प्रार्थना प्रतिदिन करना। उत्तम सुगंधित पुष्पों से, चन्दन से, धूप से प्रतिदिन परमात्मा का पूजन करना। सारे विश्व का कल्याण करने वाले श्रमवान में पूर्ण श्रद्धा रखना। प्रतिदिन भगवान के साथ का जाप करना और उनके बताये मार्ग पर चलने की भावना रखना।
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