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{{ सम्मीलने नयनयोर्न हि किञ्चिस्ति ।
जीवन के किसी भी महनतम पल में जरा स्मरण कीजिए उस रावण का जिसकी चमचमाती स्वर्णलंका आज कहाँ गायब हो गई....? उस सुल्तान महम्मूद गज़नवी का व विराट वैभव कैसे नष्ट हो गया ? सिकन्दर महान् की वह दौलत कहाँ चली गई जिसका संयोजन करने में उसने अपने जीवन की समस्त शक्ति लगा दी थी और वह कारूँ का खजाना..... जिसकी चाबियाँ कहते हैं चालीस ऊँटों पर लदती थीं वह कहाँ खो गईं....? जो आज सुबह तक करोड़पति थे वे शाम को रोड़पति बन गए। कुछ देर अपने भीतर में झांककर शांतभाव से चिन्तन करके देखिए इस जगत् और जीवन की सच्चाई का.... इस चार दिन की जिन्दगी के लिए इतनी दौड़-धूप, दंगेफसाद क्यों कर रहे हो ? ज़रा संभालो, जिंदगी भर मिट्टी के ठीकरों और कागजी टुकड़ों के लिए कितना परिश्रम करोगे....? कितने संघर्ष झेलकर Status को बनाया
और कितनी समस्याओं का समाधान खोजकर उस प्राप्त धन और प्रतिष्ठा को सुरक्षित रखा.... न जाने कब ये दो आँखें बंद हो जाएँगी और सम्पत्ति के सुन्दर सदन ढह जाएँगे कहा नहीं जा सकता। जीवन का खेल खत्म होने पर बादशाह और प्यादा एक ही डिब्बे में बंद कर दिए जाते हैं। राजा हो या रंक सबका अंत एक सा ही होता है।
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