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o स्वामी विवेकानन्द ने कहा है - शक्ति ही जीवन है अतः शक्ति का संचय करो, शक्ति की उपासना करो और शक्ति का सही उपयोग करो। सब शक्तियाँ Neutral होती हैं। कोई भी शक्ति भली - बुरी नहीं होती। यदि उसका विनाशात्मक उपयोग हो तो वह बुरी हो जाती है और सृजनात्मक उपयोग हो तो अच्छी हो जाती है। जैसे एक माली जब खाद को लाता है तब उसकी गंध आती है किन्तु जब उसे बगीचे में डालकर बीज बोया जाता है तो प्रतिदिन समय-समय पर पानी देने से वह खाद ही उन बीजों से गुजरकर पौधे के रूप में परिवर्तित हो जाती है। यह है शक्ति का रूपांतरण जो दुर्गंधमय खाद को भी सुगंधमय फूल में रूपांतरित करता है। यह सत्य है कि शक्ति
निरपेक्ष है उसे जैसा ढांचा दो वैसे ही ढल जाती है। अगर इसे क्रोध का रूप मिलेगा तो वह क्रोध बन जाती है और प्रेम का रूप दो तो प्रेम बन जाती है। यही ऊर्जा संसार की र तरफ भी ले जाती है तो यही ऊर्जा निर्वाण को भी उपलब्ध कराती है। ऊर्जा एक ही है चाहे इसे 'पर' में लगाओ या " 'स्व' में, 'पाप' में लगाओ या 'पुण्य' मैं। कहा भी है - मनुष्य के भीतर जो कुछ सर्वोत्तम है उसका विकास करने । हेतु शक्तियों को निरंतर विधेयात्मक दिशा में लगाना चाहिए।
वीर्यं प्रवन्तयेत् ।
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