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महापुरूषों की श्रेष्ठता एवं महानता का राज प्रेरणा में छिपा है। परिणाम स्वरूप उनका जीवन भी प्रेरणास्पद सिद्ध होता है। प्रेरणा वह पानी है जो मन रूपी धरती के भीतर रहे बीजों को पनपने का प्रबल निमित्त बनती है। प्रेरणा ऐसा सिंहनाद है जो चिरकाल से सुप्त चेतना को जगाने में समर्थ है। प्रेरणा को इत्र की उपमा दी गई। जैसे इत्र दो ढंग से लगाया जाता है। चाहे इसे हम स्वयं लगाए या कोई दूसरा हमें लगाए। इसी प्रकार प्रेरणा भी या तो स्वतः स्फूरित होती है या दूसरों से भी प्राप्त हो सकती है। कई बार किसी घटना या प्रकृति को देखकर मन स्वतः प्रेरित हो उठता है तो जीवन में अनेक बार हम किसी व्यक्ति की अच्छाई से उनके श्रेष्ठ कार्यों से या उनकी सफल जिंदगी से प्रभावित हो जाते हैं तब उनसे प्रेरित होकर हम अपने व्यक्तिगत जीवन में भी वैसा ही चाहते हैं। जब मन स्वतः प्रेरित नहीं हो पाता तब उसे हिलाकर, सुनाकर, समझाकर और आदर्श चरित्रों के माध्यम से प्रेरणा दी जाती है। प्रेरक आदर्शों का सान्निध्य पारस पत्थर की भाँति उसके जीवन रूपी लोहे को मूल्यवान स्वर्ण बना देता है। आदर्शजीवन दर्पण के सदृश होता है। दर्पण को देखने के लिए हम दर्पण में नहीं देखते अपितु स्वयं को देखने के लिए देखते हैं। उनसे प्रेरणा लेकर हम अपने जीवन को निहारते भी हैं तथा संवारते भी हैं।
Il take
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life
death
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