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________________ ang I DHAH SHRAVAN dharmSHRAVANdhar hravan Vullalli Ullalill DHARMshravan Jharm SHRAVAN dharmSHRAVAN dharmdharmdharm ISHRAVANShravan SHRAVAN arm shravan DHARM shravan dharmSHRAVAN | shravan dharm shravan D SHRAVAN shravan shravan dha DHARMSHRAVANDHARMSHRAVANDHARM ARMShravan shravani shravan ashravanDHARM shravan shravan shravan DHARM dharmSHRAVANDHA shravan SHRAVANO nar shravan dharm SHRA shravan dha dha dha SHRAVAN hadhar सोच्चा जाणइ कल्लाणं ५ SHRAVAN धर्मश्रवण dhe जीवन में धर्मश्रवण Search Light का कार्य करता है जिससे मार्ग खोजना, चलना और मंजिल तक पहुँचना आसान हो जाता है। सुनने का प्रयोजन मात्र इतना ही है कि भीतर की आँखें खुल जाएँ और स्वयं को देखने की कलाकुशलता आ जाए। सुनने से ही श्रेय और अश्रेय का, हित और अहित का, पुण्य और पाप का बोध होता है। धर्मश्रवण का मन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। एक ही शब्द सुनकर धन्ना, शालिभद्र तथा रोहिणेय चोर की आत्मा जागी थी। इसलिए आचार्यों ने गृहस्थ को प्रतिदिन धर्मश्रवण करने की प्रेरणा दी। भारतीय संस्कृति के ऋषि-मुनियों ने कहा है - प्रत्येक गृहस्थ को पहले कानों को भोजन देना चाहिए बाद में जुबान को देना चाहिए। मनोविज्ञान भी कहता है पढ़ने से अधिक लाभ श्रवण का है। सुनते समय मन को समग्र रूप से एकाग्र करना पड़ता है क्योंकि जो बोला जा रहा है वह दोहराया नहीं जाएगा परंतु पढ़ते समय आप दस बार पन्ने पलटकर किताब पढ़ सकते हैं। सुना हुआ याद रहे या न रहे पर वह अंतस् के किसी कोने में सरक जाता है जहाँ उसके निशान जम जाते हैं। श्रवण किया हुआ ज्ञान समय और परिस्थितियों के साथ आत्मा को जागृत करता है। इसलिए तब तक सुनना चाहिए जब तक सुना हुआ आचरण में न उतरें। 154 ww.jainelibrary.org
SR No.003222
Book TitleLife Style
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanbodhisuri
PublisherK P Sanghvi Group
Publication Year2011
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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