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--- निर्माता
परमात्मा महावीर ने कहा - 'मनुष्य स्वयं अपने जीवन का निर्माता है।' इन्सान चाहे तो अपनी जीवन-बगियाँ में सुन्दर फूल खिला सकता है अन्यथा काँटे भी बिखेर सकता है। मनुष्य का चित्त निर्मल हो जाए तो देवत्व उससे दूर नहीं और चित्त विकृत हो जाए तो पतन निश्चित है। जब कोई साँप संस्कारित हो जाता है तो वह श्रावक बन जाता है और जब कोई श्रावक विकृत हो जाता है तो वह साँप बन जाता है। परमात्मा का अवतरण
मगई साहइ सुप्पउत्तो दुग्गडंग
दवाइं च दुप्पउत्तो ।
{{ अप्पा सुगई साह
किसी आकाश से नहीं होता और शैतान कहीं पाताल में नहीं रहता। सब कुछ आदमी के भीतर ही है। यह मन सत् प्रवृत्तियों में लग जाए तो राम बन जाता है और गलत प्रवृत्तियों में लग जाए तो रावण बन जाता है। इसलिए कहा है - मनवा ! तू ही रावण है और तू ही राम है। जब व्यक्ति का प्रेम उत्तेजित हो जाए तो क्रोध बन जाता है और क्रोध उदार बन जाए तो करूणा बन जाता है और अमृत यदि विकृत हो जाए तो विष बन जाता है। मनुष्य का मलिन चित्त ही अधर्म है और निर्मल चित्त धर्म है। प्राप्त शक्तियों का सदुपयोग किया जाए तो उत्थान हो जाता है और दुरूपयोग से पतन होता है। स्पष्ट है कि हमारे जीवन के आधार और कर्णाधार हम खुद ____ ही हैं। यही तो मनुष्य की परम स्वतंत्रता है।
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