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________________ ३९२ सिन्दूरप्रकर इस अवस्था से गुजरना होता है। क्या मुझे भी इस अवस्था को देखना होगा, तत्काल राजा ने पूछा। हां, महाराज! कोई भी इस अपवाद से नहीं बच सकता। जो प्राणी इस संसार में जन्म लेता है उसे निश्चित ही वृद्धावस्था से गुजरना होता है, यह संसार का अटल और शाश्वत नियम है, गोशाला के रक्षकों ने राजा से कहा। यह सुनकर राजा विचारमग्न हो गया। मन में अनेक प्रकार के संकल्प-विकल्प उठने लगे। वृद्धावस्था के नाम से दिल कांपने लगा। अरे! तब तो मुझे भी उसी प्रवाह में बहना होगा। चिन्तन की ऊर्मियों ने उसे उबारा। वृद्धावस्था के निमित्त ने उसके दृष्टिकोण को बदल दिया। सहसा उसे जातिस्मरण ज्ञान हो गया। वह अज्ञात से ज्ञात की ओर चल पड़ा, राजा से भिक्षु बन गया, संयमजीवन का निर्वहन करने लगा और एक दिन केवलज्ञान के आलोक से आलोकित हो गया। अन्त में उसने सब कर्मों का क्षयकर मोक्षपद को प्राप्त कर लिया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003217
Book TitleSindurprakar
Original Sutra AuthorSomprabhacharya
AuthorRajendramuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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