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________________ सिन्दूरप्रकर यह हम संन्यासियों का जीवनव्रत हैं। यदि वह वहां से कहीं और चले जाएं तब मैं आपके मकान में आ सकती हूं। सेठजी ने हंसते हुए कहाउन्हें और कहीं भेजना तो मेरे बाएं हाथ का खेल है। आप निश्चिन्त रहें। अवश्य ही आपको मेरे घर पधारना है। मैं अभी जाकर सारी व्यवस्था कर देता हूं। यह कहकर सेठजी अपने मकान में आ गए। वे तत्काल संन्यासीजी के पास पहुंचे और बोले-महात्मन् ! अब आपको मेरा मकान खाली करना होगा। मुझे इसकी अत्यधिक आवश्यकता है। घर में कुछ अतिथि आने वाले हैं। उनकी मेजबानी करने के लिए मेरे दूसरे-दूसरे घर छोटे पडते हैं, इसलिए उनको ठहराने के लिए मुझे इसी भवन में व्यवस्था करनी है। सेठजी! लगता है, आप अपनी बात से मुकर गए हैं। आप मुझे यहां इस शर्त पर लाए थे कि चातुर्मास के बीच आपको कहीं नहीं जाना होगा। चातुर्मास संपन्न होने के बाद ही आपका विहार होगा। आप अपनी शर्त से हटकर आज मुझे जाने को कह रहे हो, यह आपके लिए शोभास्पद है या नहीं, सोच लें, संन्यासी ने उसे कड़े स्वर में कहा। महाराज ! मेरे लिए क्या शोभा देता है और क्या नहीं शोभा देता, मैं अच्छी प्रकार से जानता हूं। जब मुझे मकान की जरूरत है तो क्या आप कुछ दिनों के लिए दूसरा मकान भी परिवर्तित नहीं कर सकते, यह आपके लिए शोभा नहीं देता। मुझे तो इसमें आपका हठाग्रह ही दिखाई देता है। कुछ दिनों के लिए दूसरे स्थान में जाने से कौनसा अनर्थ घटित हो जाएगा? जब मकान मेरा है। उसमें मेरी अनुमति के बिना आप कैसे रह पाओगो? सेठजी ने तमतमाते हुए कहा। सेठजी! आज आप यह बात कह रहो हो। यदि पहले ही आप यह बात कह देते तो मैं यहां क्यों आता? आप अपने वचन को याद करें और उसी के अनुरूप अपनी शर्त पर स्थिर रहकर उस वचन को पूरा करें, संन्यासी ने रोषारुण होते हुए कहा। संन्यासीजी! हो सकता है कि मैंने आपको वचन दिया हो। पर आज परिस्थिति दूसरी हो गई है, इसलिए मुझे मकान खाली कराना पड़ रहा है। यदि आप सीधे ढंग से मकान खाली करते हैं तो आपका स्वागत है, अन्यथा मैं अभी अपने आदमियों को बुलवा कर आपके दंड-कमंडल बाहर फिंकवाता हूं, सेठजी ने उत्तेजित होते हुए कहा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003217
Book TitleSindurprakar
Original Sutra AuthorSomprabhacharya
AuthorRajendramuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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