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विनय पाठ
सफल जन्म मेरा हुआ, प्रभु दर्शन से आज । भव समुद्र नहिं दीखता, पूर्ण हुए सब काज || १|| दुर्निवार सब कर्म अरु, मोहादिक परिणाम । स्वयं दूर मुझसे हुए, देखत तुम्हें ललाम ||२||
संवर कर्मों का हुआ, शान्त हुए गृह जाल । हुआ सुखी सम्पन्न मैं, नहिं आये मम काल ॥ ३॥ भव कारण मिथ्यात्व का, नाशक ज्ञान सुभानु । उदित हुआ मुझमें प्रभो, दीखे आप समान || ४ || मेरा आत्मस्वरूप जो, ज्ञान सुखों की खान । आज हुआ प्रत्यक्ष सम, दर्शन से भगवान ॥५॥ दीन भावना मिट गई, चिन्ता मिटी अशेष | निज प्रभुता पाई प्रभो, रहा न दुख का लेश || ६ || शरण रहा था खोजता, इस संसार मँझार | निज आतम मुझको शरण, तुमसे सीखा आज ||७|| निज स्वरूप में मगन हो, पाऊँ शिव अभिराम । इसी हेतु मैं आपको, करता कोटि प्रणाम ||८|| मैं वन्दौं जिनराज को, धर उर समता भाव । तन-धन-जन- जगजाल से, धरि विरागता भाव ॥६॥ यही भावना है प्रभो, मेरी परिणति माहिं । राग-द्वेष की कल्पना, किंचित् उपजै नाहिं ॥ १० ॥
विनय पाठ बोलकर सामग्री चढ़ाने वाली थाली में शुद्ध चन्दन द्वारा मंगल स्थापना करें फिर
पूजा पीठिका बोलकर पूजा करें।
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स्वाध्याय: परमं तपः
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