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समान विस्तार वाले हैं । १४. इन पर्वतों के ऊपर क्रम से पद्म, महापद्म, तिगिच्छ, केसरी, महापुण्डरीक और पुण्डरीक ये तालाब हैं। १५. पहला तालाब एक हजार योजन लम्बा और इससे आधा चौड़ा हैं। १६. दस योजन गहरा है। १७. इसके बीच में एक योजन का कमल है। १८. आगे के तालाब और कमल दूने-दूने हैं। १६. इनमें श्री, लो,
र्कीर्ति. बुद्धि और लक्ष्मी ये देव याँ सामानिक और परिषद् देवों के साथ निवास करती हैं । तथा इनकी आयु एक पल्य की है। २०. इन भरत आदि क्षेत्रों में से गंगा, सिन्धु, रोहित, रोहितास्या, हरित्, हरिकान्ता, सीता, सीतोदा, नारी, नरकान्ता, सुवर्णकूला, रुप्यकूला, रक्ता और रक्तोदा नदियाँ बहती हैं । २१. दो-दो नदियों में से पहली-पहली नदी पूर्व समुद्र को जाती है। २२. किन्तु शेष नदियां पश्चिम समुद्र को जाती हैं। २३. गंगा और सिन्धु आदि नदियों की चौदह-चौदह हजार परिवार नदियाँ हैं । २४. भरत क्षेत्र का विस्तार पांच सौ छब्बीस सही छह बढे उन्नीस योजन है। २५. विदेह पर्यन्त पर्वत और क्षेत्रों का विस्तार भरतक्षेत्र के विस्तार से दूना-दूना है। २६. उत्तर के क्षेत्र और पर्वतों का विस्तार दक्षिण के क्षेत्र और पर्वतों के समान है। २७. भरत और ऐरावत क्षेत्रों में उत्सर्पिणी के और अवसर्पिणी के छह समयों की अपेक्षा वृद्धि और ह्रास होता रहता है। २८. भरत और ऐरावत के सिवा शेष भूमियाँ अवस्थित हैं। २६. हैमवत, हरिवर्ष और देवकुरू के प्राणियों की स्थिति क्रम से एक, दो और तीन पल्य प्रमाण है। ३०. दक्षिण के समान उत्तर में है। ३१. विदेहों में संख्यात वर्ष की आयुवाले प्राणी हैं। ३२. भरतक्षेत्र का विस्तार जम्बूद्वीप का एक सौ नम्बेवाँ भाग है। ३३. धातकी खण्ड में क्षेत्र तथा पर्वत आदि जम्बूद्वीप से दूने हैं। ३४. पुष्कराई में उतने ही हैं । ३५. मानुषोत्तर पर्वत के पहले तक ही मनुष्य हैं। ३६. मनुष्य दो प्रकार के हैं-प्राय और म्लेच्छ। ३७. देवकुरु और उत्तरकुरु के सिवा भरत, ऐरावत और विदेह ये सब कर्मभूमि हैं। ३८. मनुष्यों को उत्कृष्ट स्थिति तीन पल्य और जघन्य अन्तर्मुहुर्त है। ३६. तिर्यचों की स्थिति भी उतनी ही है।
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