________________
हिन्दी अनुवाद जो मोक्षमार्ग के नेता हैं, कर्मरूपी पर्वतों के भेदनेवाले हैं और विश्वतत्त्वों के ज्ञाता हैं, उनकी मैं उनके समान गुणों की प्राप्ति के लिए वन्दना करता हूँ।
त्रैलोक्यपूज्य अर्हन्त परमात्मा के द्वारा कहे हुये तीन काल, छह द्रव्य, नौपदार्थ, षटकायजीव षट्लेश्या, पंचास्तिकाय, व्रत, समिति, गति ज्ञान, चारित्र ये सब मोक्ष के मूल हैं, जो बुद्धिमान इनको जानता है । श्रद्धा करता है तथा तदनुरूप प्राचरण करता है; वह निश्चय से शुद्धदृष्टी (सम्यग्दृष्टी) है।
तृतीय अध्याय १. रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा, पंकप्रभा, धूमप्रभा,तमःप्रभा और महातमः प्रभा ये सात भूमियां घनाम्बु, वात और आकाश के सहारे स्थित हैं तथा क्रम से नीचे-नीचे हैं । २. उन भूमियों में क्रम से तीस लाख, पच्चीस लाख, पन्द्रह लाख, दस लाख, तीन लाख, पाँच कम एक लाख और पांच नरक हैं। ३. नारकी निरन्तर अशुभतर लेश्या, परिणाम, देह, वेदना और विक्रियावाले हैं। ४. तथा वे परस्पर उत्पन्न किये गये दुःख वाले होते हैं। ५. और चौथी भूमि से पहले तक वे संक्लिष्ट असुरों के द्वारा उत्पन्न किये गये दुःखवाले भी होते हैं। ६. उन नरकों में जीवों की उत्कृष्ट स्थिति क्रम से एक, तीन, सात, दस, सत्रह, बाइस और तैंतीस सागर हैं । ७. जम्बूद्वीप आदि शुभ नाम वाले द्वीप और लवणोद आदि शुभ नाम वाले समुद्र हैं । ८. वे सभी द्वीप और समुद्र दूने-दूने व्यास वाले, पूर्व-पूर्व द्वीप और समुद्र को वेष्टित करने वाले और चूड़ी के आकारवाले हैं। 8. उन सब के बीच में गोल और एक लाख योजन विष्कम्भवाला जम्बूद्वीप है, जिसके मध्य में मेरुपर्वत है। १०. भरतवर्ष, हैमतवर्ष, हरिवर्ष, विदेहवर्ष, रम्य कवर्ष, हैरण्यवर्ष और ऐरावतवर्ष ये सात क्षेत्र हैं। ११. उन क्षेत्रों को विभाजित करने वाले और पूर्व-पश्चिम लम्बे ऐसे हिमवान्, महाहिमवान्, निषध, नील, रुक्मी और शिखरिणि ये छह वर्षधर पर्वत हैं । १२. ये छहों पर्वत क्रम से सोना, चाँदी, तपाया हुआ
सोना, वैडूर्यमणि, चाँदी और सोना इनके समान रंगवाले हैं। १३. इनके का पार्श्व मरिणयों से चित्र-विचित्र हैं तथा वे ऊपर, मध्य और मूल में
Privats & Personal Use Only
Melibra 19