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जब ध्यान अग्नि प्रज्ज्वलित होय, कर्मों का ईंधन जले सभी। दशधर्ममयी अतिशय सुगंध, त्रिभुवन में फैलेगी तब ही।। तन.।। ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनायधूपं नि.स्वाहा। जो जैसी करनी करता है, वह फल भी वैसा पाता है।
जो हो कर्तृत्व-प्रमाद रहित, वह महा मोक्षफल पाता है। तन.।। ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्रायमोक्षफलप्राप्ताये फलं नि.स्वाहा। है निज आतमस्वभाव अनुपम,स्वाभाविक सुख भी अनुपम है।
अनुपम सुखमय शिवपद पाऊँ, अतएव अर्घ्य यह अर्पित है।तन.।। ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तयेअर्घ्य नि.स्वाहा।
पञ्चकल्याणक अर्घ्य
(दोहा) दूज कृष्ण वैशाख को, प्राणत स्वर्ग विहाय ।
वामा माता उर वसे, पूनँ शिव सुखदाय।। ॐ ह्रीं वैशाखकृष्णद्वितीयांगर्भमंगलमण्डिताय श्री पार्श्वनाथजिनेन्द्राय अयं नि.स्वाहा।
पौष कृष्ण एकादशी, सुतिथि महा सुखकार।
अन्तिमजन्म लियो प्रभु, इन्द्रकियोजयकार। ॐ ह्रींपौषकृष्णएकादश्यांजन्ममंगलप्राप्ताय श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अयं नि.स्वाहा।
पौष कृष्ण एकादशी, बारह भावन भाय।
केशलोंच करके प्रभु, धरो योग शिव दाय।। ॐ ह्रींपौषकृष्णाएकादश्यांतपोमंगलमंडिताय श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं नि.स्वाहा।
शुक्लध्यान में होय थिर, जीत उपसर्ग महान ।
चैत्र कृष्ण शुभ चौथ को, पायो केवलज्ञान ।। ॐ ह्रीं चैत्रकृष्णचर्तुर्थ्यां केवलज्ञानप्राप्ताय श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अयं नि.स्वाहा।
श्रावण शुक्ल सु सप्तमी, पायो पद निर्वाण ।
सम्मेदाचल विदित है, तव निर्वाण सुथान ।। ॐ ह्रीं श्रावणशुक्लासप्तम्याम्मोक्षमंगलमंडिताय श्रीपार्श्वनाथ जिनेन्द्रायअयं नि.स्वाहा।
जयमाला (तर्ज-प्रभुपतित पावन में...) हे पार्श्व प्रभु मैं शरण आयो दर्शकर अति सुख लियो। चिन्ता सभी मिट गयी मेरी कार्य सब पूरण भयो ।।
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