SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 25
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री सिद्ध पूजन (हरिगीतका एवं दोहा) निज वज्रपौरुष से प्रभो ! अन्तरकलुष सब हर लिये। प्रांजल' प्रदेश-प्रदेश में, पीयूष निर्झर झर गये ।। सर्वोच्च हो अतएव बसते लोक के उस शिखर रे । तुम को हृदय में स्थाप, मणि-मुक्ता चरण को चूमते ।। ॐ ह्रीं श्रीसिद्धचक्राधिपते सिद्धपरमेष्ठिन् ! अत्र अवतर अवतर ॐ ह्रीं श्रीसिद्धचक्राधिपते सिद्धपरमेष्ठिन् ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः ॐ ह्रीं श्रीसिद्धचक्राधिपते सिद्धपरमेष्ठिन् !अब मम सन्निहितो भव भव वषट् शुद्धातम-सा परिशुद्ध प्रभो ! यह निर्मल नीर चरण लाया। मैं पीड़ित निर्मम ममता से, अब इसका अन्तिम दिन आया ।। तुम तो प्रभु अंतर्लीन हुए, तोड़े कृत्रिम सम्बन्ध सभी । मेरे जीवन-धन तुमको पा, मेरी पहली अनुभूति जगी।। ॐ ह्रीं श्रीसिद्धचक्राधिपतयेसिद्धपरमेष्ठिनेजन्म-मरा-मृत्यु-विनाशनायजलं नि.स्वाहा। मेरे चैतन्य-सदन में प्रभु ! धू धू क्रोधानल जलता है। अज्ञानअमा' के अंचल में, जो छिपकर पल-पल पलता है ।। प्रभु ! जहाँ क्रोध का स्पर्श नहीं, तुम बसो मलय की महकों में। मैं इसीलिए मलयज लाया क्रोधासुर भागे पलकों में ।। ॐ ह्रीं श्रीसिद्धचक्राधिपतये सिद्धपरमेष्ठिने संसारताप-विनाशनाय चंदनं नि. स्वाहा। अधिपति प्रभु! धवल भवन के हो, और धवल तुम्हारा अन्तस्तल। अन्तर के क्षत सब विक्षत कर, उभरा स्वर्णिम सौंदर्य विमल ।। मैं महा मान से क्षत-विक्षत, हूँ खंड खंड लोकांत-विभो। मेरे मिट्टी के जीवन में, प्रभु अक्षत की गरिमा भर दो।। ॐ ह्रीं श्रीसिद्धचक्राधिपतये सिद्धपरमेष्ठिने अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतं नि.स्वाहा। चैतन्य-सुरभि की पुष्प वाटिका, में विहार नित करते हो। माया की छाया रंच नहीं, हर बिन्दु सुधा की पीते हो। निष्काम प्रवाहित हर हिलोर, क्या काम काम की ज्वाला से। प्रत्येक प्रदेश प्रमत्त हुआ, पाताल-मधु-मधुशाला' से ।। ॐ ह्रीं श्रीसिद्धचक्राधिपतये सिद्धपरमेष्ठिने कामबाण-विध्वंसनाय पुष्पं नि.स्वाहा। १.शुद्ध २. अमावस्या ३. सिद्धशिला/निर्मल चैतन्य-भवन ४. शुद्ध अन्तस्तत्व का आनन्दभवन । 24 Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003214
Book TitleJain Adhyatma Academy of North America
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Center of Southern America
PublisherUSA Jain Center Southern California
Publication Year
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy