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पूजा प्रतिज्ञा पाठ (हिन्दी) स्याद्वाद वाणी के नायक. श्री जिनको मैं नमन कराय । चार अनंत चतुष्टयधारी, तीन जगत के ईश मनाय ।। मूलसंघ के सम्यग्दृष्टि, उनके पुण्य कमावन काज । करूँ जिनेश्वर की यह पूजा, धन्य भाग्य है मेरा आज ।।१।। तीन लोक के गुरु जिन-पुगव, महिमा सुन्दर उदित हुई। सहज प्रकाश मई द ग-ज्योति, जग-जन के हित मुदित हई ।। समवसरण का अद्भुत वैभव, ललित प्रसन्न करी शोभा । जग-जन का कल्याण करे अरु, क्षेम कुशल हो मन लोभा ॥२॥ निर्मल बोध सुधा सम प्रकटा, स्व-पर विवेक करावनहार । तीन लोक में प्रथित हुअा जो, वस्तु त्रिजग प्रकटावनहार ।। ऐसा केवलज्ञान करे, कल्याण सभी जगतीतल का । उसकी पूजा रचू अाज मैं, कर्म बोझ, करने हलका ।।३।। द्रव्य-शुद्धि अरु भाव-शुद्धि, दोनों विधि का अवलंबन कर । करूं यथार्थ पुरुष की पूजा, मन-वच-क्रम एकत्रित कर ।। पुरुष-पुराण जिनेश्वर अर्हन् , एकमात्र वस्तू का स्थान । उसकी केवल-ज्ञान वह्नि में, करूं समस्त पुण्य अाह्वान ॥४॥
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स्वस्ति मंगल (हिन्दी) ऋषभदेव कल्याण कराय, अजित जिनेश्वर निर्मल थाय । स्वस्ति करें संभव जिनराय, अभिनंदन के पूजों पाय ||१|| स्वस्ति करें श्री सुमति जिनेश, पद्म-प्रभ पद-पद्म विशेष । श्री सुपार्श्व स्वस्ति के हेतु, चन्द्रप्रभ जन तारन सेतु ||२|| पुष्पदंत कल्याण सहाय, शीतल शीतलता प्रकटाय । श्री श्रेयांस स्वस्ति के श्वेत, वासुपूज्य शिव साधन हेत ॥३॥ विमलनाथ पद विमल कराय, श्री अनंत आनंद बताय । धर्मनाथ शिव शर्म कराय, शांति विश्व में शांति कराय ॥४॥ कुंथु और अरजिन सुखरास, शिवमग में मंगलमय आश । मल्लि और मुनिसुव्रत देव, सकल कर्मक्षय कारण एव ॥५॥ श्री नमि और नेमि जिनराज, करें सुमंगल मय सब काज | पार्श्वनाथ तेवीसम ईश, महावीर वंदों जगदीश ॥६॥ ये सब चौबीसों महाराज, करें भव्य जन मंगल काज ।। मैं आयो पूजन के काज, रख्यो श्री जिन मेरी लाज ||७||
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