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श्री सरस्वती चालीसा कवि: प० कमला प्रसाद मिश्रा
माता सरस्वती तुझे प्रणाम । जग जननी है तुझे प्रणाम ।।१।। वीणा पाणि है तेरा नाम | ज्ञान की देवी तुझे प्रणाम |२|| धवल हँस पर तेरी सवारी । धवल वस्त्र की शोभा न्यारी ।।३। धवल मालिका गले विराजे | धवल पुष्प हैं तन पर साजे ||४|| सप्त स्वरों की तू है रानी । तुझसे बड़ा कौन है दानी ।।५। बिना कृपा तेरे हे माता । जग में कुछ भी प्राप्त न होता ।।६।। तू ब्रह्मा की कन्या प्यारी | सब देवों की तू है दुलारी ।।७।। सुमति कुमति की तू है दाती । सुख समृद्धि तुझसे है आती ||८|| सब विद्याओं की तू है माता | अखिल विश्व सब तुझ से पाता ।।९।। हर स्वर में है तेरी महिमा । हर गीतों में तेरी गरिमा ||१०|| है साजों में तेरी आवाज | गुनिजन जाने इसका राज ||११| कवियों को तू देती शक्ति । भक्तों में भरती तू भक्ति ।।१२।। प्रकृति में दिखती तेरी छटा । नभ में बनकर आई घटा ।।१३।। पुष्पों में तेरी सुन्दरता | पत्ता पत्ता यश गाता ||१४|| उषा में लाली तू भरती । अद्भुत रंग से उसे सजाती ।।१५।। शब्द शब्द में जो है ज्ञान । तेरा ही उसमें प्रतिमान ||१६|| हृदय हृदय में तेरा वास । सच्चे हृदय से जो बनते दास ।।१७।। नयी सोच और नये विचार | करती उनको तू साकार ||१८|| कठिन मार्ग होते हैं प्रशस्त । बाधाओं को तू करती हवस्त ।।१९।। अगम निगम सब तुझ में समाये । भूत भविष्य को तू ही बनाये ।।२०।। ममता का सागर तू माता । तू रूठे तो रूठे विधाता ||२१|| मन वांछित फल तुम ही देती । श्रद्धा भक्ति तू बदले में लेती ।।२२।। जल थल नभ तेरी आरती गावें । सुर नर मुनि नित तुमको ध्यावें ||२३|| ज्ञान अमृत जानें सब कोई । बिना पिये वह अमर न होई ।।२४।। हरो मोह माया और ममता | भर दो ज्ञान, ध्यान और समता ||२५।। विष को अमृत करने वाली । पतझड में कलियाँ देने वाली ।।२६ ।। तुमसा दयालु लोक में नाहीं । हर क्षण चिन्ता तुम्हें हमारी ।।२७।। कठिन समय में तू है सहाई । तू जग जननी सब की माई ।।२८।। होती कृपा है जिस पर तेरी । उसके कार्य में न लगती देरी ।।२९।। जिस गृह में हो वास तुम्हारा । सुख संपत्ति पाये वह सारा ||३०| रिद्धि सिद्धि की तुम हो दायक | तेरी कृपा से पाते साधक ||३१।। सोलह कला की तुम हो रानी । तुमसा और न कोई दानी ।।३२। आदि अन्त नहिं तुमरो माता । जन्म जन्म से तुमरो नाता ||३३।। वेद पुराण यश माँ के गावें । जग जननी को सब ही ध्यावें ||३४।। आदि भवानी तुम हो माता | हर युग तेरी महिमा गाता ||३५|| माँ का ध्यान धरो तुम प्राणी । देर लगत नहिं बनते ज्ञानी ।।३६ ।। मन मंदिर में माँ तुम रहना । बागडोर को पकडे रहना ||३७। सेवक बन कर रहूँ तुम्हारा । बेडा पार करो माँ मेरा ||३८|| जो जपता तेरा नाम निरन्तर | बसती सदा है उसके अन्तर ।।३९ ।। माँ चरणों की धूल लगाऊं । जनम जनम की त्रास मिटाऊं ||४011
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