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तीर्थ माला संग्रह
७७ विचमा भूषण वावि जोईने चालो रें। तुम्हे गुण गाता शुभभाव साथे मालो रे ॥२०॥
धूपघटि कर मांहि झूला देता रें। वडनी छाया मांहि ताली लेतां रे ।
आवी तलेटी ठाण तनु शुचि करीये रे। पूरव रीत प्रमाण पछे परवरिये रे । २१॥
इणी परें तीरथ माल भावे भरणस्ये रे । जिणें दीठु नयण निहाल विसेखे सुणस्य रे।
हलस्य मंगल जेह कंठे धरस्थे रे। वली सुख संपद सुविलास महोदय वरस्ये रे ॥२२॥
तपगच्छ गयण दिणंद रूप छाजे रे । श्री विजय देव सुरिन्द अधिक दिवाजे रे ।
रत्न विजय तस सीस पंडित राया रे । गुरु राय विवेक जगीस तास पसाया रे ॥२३॥
कीधो एक अभ्याश अढार च्यालीसे रें। उजल फागुण मास तेरस दिवसे रें।
श्री विमलाचल चित धरी गुण गाया रे। कहे अमृत भवियण नित नमो गिरिराया रे ॥२४॥ कलश:--
इम तीरथ माला गुण विशाला विमल गिरिवर राजनी कहि स्वपर हेतें पुण्य संकेते एह जिनवर साजनी। ___तप गच्छ गयण दिणंद गणधर विजय जिनेन्द्र सूरी सरु रची तास राज्ये पुण्य साजे अमृत राग सुहे करु ॥१॥
इति तीर्थमाला सम्पूर्णम् श्री विमलाचल गिरी राजनी
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