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तीर्थ माला संग्रह
नव भव नारि विचारि करी संत न दाखइ छेय । पेहलु शिव पुरी पाठवी ए गिरुपा तण सनेह ॥६६॥ कलश:इम सकल तीरथ राय भेटि पुण्य पेटी बहु भरी। श्री संघ हरख्या देव निरख्या विजय यात्रा इम करी। श्री भक्तिलाभ सीस जंपइ चारुचंद दयापरो । सो दसु निम्मल नाण संपइ पढम जिण आदीसरो ॥६७।।
इति श्री शत्रुजय चैत्य परिपाटी श्री आदीश्वर स्तवनं समाप्त । संवत् १६४८ वर्षे फागुण शुदी १४ दिने लिखितं पंडित श्री मुनि विजय गणि शिष्य कृपा विजय गणिना। श्री गिरिनार्योपरि स्ववाचनार्थं ।
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