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तीर्थ माला संग्रह पवन प्रारम्भ हुआ, पवन से तृण रेती उड़े इसमें तो बड़ी बात नहीं थी, परन्तु उसकी प्रचण्डता यहां तक बढ़ चली कि उसमें पत्थर तक उड़ने लगे, तब लोगों का धैर्य टूटा । वे प्राण बचाने की चिन्ता से वहाँ से भागे, लोगों ने अपने-अपने सामने जो देव-पूजा पट्ट रक्खे थे वे लगभग सबके सब प्रचण्ड पवन में विलीन हो गये, केवल सुपार्श्वनाथ का एक पट वहाँ रह गया, हवा का बवण्डर शांत हुआ लोग फिर एकत्रित हुए और पाश्र्वनाथ का पट देखकर बोले ये अरिहंत देव हैं और यह स्तूप भी इसी देव को मूर्तियों से अलंकृत है, लोग उस पट को लेकर सारे मथुरा नगर में घूमे, और तब से 'पट यात्रा' प्रवृत्त हुई। ____ 'इस प्रकार धर्मघोष तथा धर्मरुचि मुनि मेरू पर्वताकार देव निर्मित स्तूप में देव वन्दन कर तथा तीर्थ प्रकाश में लाकर, जैन संघ को आनन्दित कर मथुरा से विहार कर गए और क्रमश: कर्मक्षय कर संसार से मुक्त हुए । 'कुबेरा देव स्तूप की तब तक रक्षा करती रही, जबकि पार्श्वनाथ का शासन प्रचलित हुआ'।
एक समय भगवान् पार्श्वनाथ विहार क्रमसे मथुरा पधारे, और धर्मोपदेश करते हुए भावि दुष्षमा काल के भावों का निरूपण किया । पार्श्वनाथ के वहां से विहार करने के बाद कुबेरा ने संघ को बुलाकर कहा, भविष्य में समय कनिष्ट आने वाला है, कालानुभाव से राजादि शासक लोग लोभग्रस्त बनेंगे, और इस सुवर्णमय स्तूप को नुकसान पहुँचायेंगे, अतः स्तूप को ईटों के परदे से ढाँक दिया जाय, भीतर की मूर्तियों को पूजा मैं अथवा मेरे बाद जो नयी कुबेरा उत्पन्न होगो वह करेगी। संघ इष्ट का मय स्तूप में भगवान् पार्श्वनाथ को प्रस्तरमय मूर्ति प्रतिष्ठित करके पूजा किया करें । देवी की बात भविष्य में लाभदायक जानकर संघ ने मान्य की
और देवी ने विचारित योजनानुसार मूल स्तूप को ईंटों के स्तूप से ढांप दिया।' ___इष्ट का मय स्तूप पुराना हो जाने से उसमें से ईंटें निकलने लगीं थीं, इसलिए संघ ने पुराणे स्तूप को हटाकर नया पाषाण मय स्तूप बनवाने का निर्णय किया, परन्तु कुबेरा ने स्वप्न में कहा
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