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तीर्थ माला संग्रह बीच झगड़ा खड़ा कर दिया। परिणाम स्वरूप दोनों सम्प्रदायों के नेता न्याय के लिये राजा के पास पहुँचे और स्तूप का कब्जा दिलाने की प्रार्थनाएं की। राजा तथा उसका न्याय विभाग, स्तूप जैनों का है अथवा बौद्धों का इसका निर्णय नहीं दे सके ।
जैन संघ ने अपने स्थान में मिलकर विचार किया कि यह स्तूप दिव्य शक्ति से बना है और देव साहय्य से हो किसी सम्प्रदाय का कायम हो सकेगा। संघ में देव सहायता किस प्रकार प्राप्त की जाय, इस बात पर विचार करते समय जानने वालों ने कहा, वन में अमुक क्षपक के पास वन देवता पाया करती है, अत: क्षपक द्वारा उस देवता से स्तूप प्राप्ति का उपाय पूछना चाहिये । संघ में सर्वसम्मति से यह निर्णय हुआ कि दो साधु क्षपक मुनि के पास भेजकर उनके वन देवता की इस विषय में सहायता मांगी जाय ।
प्रस्ताव के अनुसार श्रमण युगल क्षपक मुनि के पास गया और क्षपकजी को संघ के प्रस्ताव से वाकिफ किया। क्षपक ने भी यथा शक्ति संघ का कार्य सम्पन्न करने का आश्वासन देकर आए हुए मुनियों को विदा किया।
नित्य नियमानुसार बन देवता क्षपक के पास आई और वन्दन पूर्वक कार्य सेवा सम्बन्धी नित्य की प्रार्थना दोहराई । क्षपक ने पूछा एक कार्य के लिये तुम्हारी सलाह आवश्यक है, देवता ने कहावह कार्य क्या है ? क्षपक बोले-- महीनों से मथुरा के देव निर्मित स्तूप के सम्बन्ध में जैन बौद्धों के बीच झगड़ा चल रहा है, राजा का न्यायाधिकरण भी परेशान हो रहा है, पर इसका निर्णय नहीं होता, मैं चाहता हूँ तुम कोई ऐसा उपाय बतानो और सहाय्य करो कि यह स्तूप सम्बन्धी-झगड़ा तुरन्त मिटे और स्तूप जैन सम्प्रदाय का प्रमाणित हो।
वन देवता ने कहा-तपस्वीजी महाराज, आज मेरी सेवा की आवश्यकता हुई न ! तपस्वी बोले--अवश्य, यह कार्य तो तुम्हारी सहानुभूति से ही सिद्ध हो सकेगा।
देवी ने कहा--पाप अपने संघ को सूचित करें कि वह आयन्दा राजसभा में यह प्रस्ताव उपस्थित करें “यदि स्तूप पर स्वयम् श्वेत
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