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________________ २२ तीर्थ माला संग्रह था। परन्तु यह मन्तव्य हमारी राय में प्रामाणिक नहीं है, क्योंकि आर्य वज्र स्वामी के अनशन का समय विक्रमीय प्रथम शताब्दी का अन्तिम भाग है, जब कि आचारङ्ग नियुक्तिकार श्रुतधर भद्रबाहु स्वामी आर्य वज्र स्वामी से सैकड़ों वर्ष पहले हो गए हैं, इससे पर्वत का रथावर्त यह नाम भद्रबाहु स्वामी के पूर्वकाल का है, इसमें शंका को स्थान नहीं। रथावर्त पर्वत किस भू प्रदेश में था इस बात का विचार करते समय हमें आर्य वज्र स्वामी के अन्तिम समय के बिहार क्षेत्र पर विचार करना होगा, आर्य वज्र स्वामी अपनी स्थविर अवस्था में सपरिवार मालव देश में विचरते थे, ऐसा जैन ग्रन्थों के उल्लेखों से जाना जाता है, उस समय भारत में बड़ा भारो द्वादश वार्षिक दुर्भिक्ष प्रारम्भ हो चुका था, साधुओं को भिक्षा मिलना तक कठिन हो गया था। एक दिन तो स्थविर वज्र स्वामी ने अपने विद्या बल से आहार मंगवा कर साधुनों को दिया, और कहा बारह वर्ष तक इसी प्रकार विद्या पिण्ड से शरीर निर्वाह करना होगा, इस प्रकार जीवन निर्वाह करने में लाभ मानते हों तो वैसा करें, अन्यथा अनशन द्वारा जीवन का अन्त कर दें। श्रमणों ने एक मत से अपनी राय दी कि इस प्रकार दूषित आहार द्वारा जीवन निर्वाह करने से तो अनशन से देह त्याग करना ही अच्छा है । इस पर विचार करके आर्य वज्र स्वामी ने अपने एक शिष्य वज्रसेन मुनि को थोड़े से साधुओं के साथ कोंकण प्रदेश में विहार करने की आज्ञा दी और कहा जिस दिन तुम को एक लक्ष सुवर्ण से निष्पन्न भोजन मिले तब जानना कि दुर्भिक्षा का अन्तिम दिन है। उसके दूसरे ही दिन से अन्न संकट हलका होने लगेगा। अपने गुरुदेव की आज्ञा शिर चढा कर वज्रसेन मुनि ने कोंकण देश की तरफ विहार किया और वज्रस्वामी ने पांच सो मुनियों के साथ रथावर्त पर्वत पर जाकर अनशन धारण किया । वज्र स्वामी के उपर्युक्त वर्णन से जाना जा सकता है कि वज्रसेन के विहार करने पर, तुरन्त आप वहां से अनशन के लिए रवाना हो गए हैं, और निकट प्रदेश में ही रहे हुए रथाJain Education International www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only
SR No.003209
Book TitleTirth Mala Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherParshwawadi Ahor
Publication Year1973
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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