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________________ तीर्थ माला संग्रह उज्जयन्त तीर्थ के सम्बन्ध में अन्य भी अनेक सूत्रों तथा उनकी टीकाओं में उल्लेख मिलते हैं, परन्तु इन सबका यहां वर्णन करके लेख को बढ़ाना उचित न होगा। प्राचार्य जिन प्रभसूरि कृत 'उज्जयन्त महा तीर्थ कल्प' तथा अन्य विद्वानों के रचे हुए प्रस्तुत तीर्थ के 'स्तव' आदि के कतिपय उपयोगो उद्धरण देकर इस विषय का निरूपण करना ही पर्याप्त समझा जाता है। उज्जयन्त पर्वत के अद्भुत खनिज पदार्थों से समृद्धिशाली होने के सम्बन्ध में प्राचार्य जिन प्रभ ने अपने कल्प में बहुत सी बातें कही हैं, जिनमें से कुछेक मनोरंजक नमूने पाठकों के अवलोकनार्थ नीचे दिये जाते हैं 'अवलोअण सिहर सिला अवरेणं तत्थगर रसोसवइ । सु अपक्ख सरिस वण्णो करेइ सुव्वं वरं हेमम् ।।२७।। गिरि पजुन्न बयारे अंबिअ आसम पयं च नामेण । तत्थ विपीपा पुहवी हिमवाए धमियाए वा होइवर हेमं ॥२८॥ (वि. ती. क. पृ. ८) उज्जित पढम सिहरे प्रारूहिउं दाहिणेन अवपरिउं । तिण्णि धणूसय मित्ते पूइकरं जं बिलं नाम ॥३०॥ उग्धाडिडं बिलं दिक्खिऊण निउणेन तत्थ गंतव्वं । दण्डं तराणि बारस दिव्व रसो जंबु फल सरिसो॥३१॥ (वि. ती. क. पृ. ८) उज्जिते नाण सिला विक्खाया तत्त्थ अत्त्थि पाहाणं । ताणं उत्तर पासे दाहिणय अह मुहो विवरो ॥३६॥ तस्स य दाहिण भाए दस धणु भूमीइ हिंगुल य वण्णो। अत्थि रसो सयवेही विधइ सुव्वं न संदे हो ॥३७॥ (वि. ती. क. पृ९) इय उज्जयन्त कप्पं अवि अप्पं जो करेइ जिण भत्तो। कोहंडिकय पणामो सो पावइ इच्छि अं सुक्खं ॥४१॥ (वि. ती. क. पृ. ६) अर्थात्-अवलोकन शिखर की शिला के पश्चिम दिग विभाग में शुक की पांखकासा हरे रंग का वेधक रस झरता है जो ताम्र को श्रेष्ठ सुवर्ण बनाता है ॥२७॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003209
Book TitleTirth Mala Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherParshwawadi Ahor
Publication Year1973
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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